क्या नॉर्मलाइजेशन कर पायेगा न्याय या छीन लेगा अवसर?: आयोग का दावा की छात्रों के साथ नहीं होने देंगे अन्याय, साथ ही छात्रों से मांगे सुझाव
क्या नॉर्मलाइजेशन कर पायेगा न्याय या छीन लेगा अवसर?

प्रयागराज: प्रतियोगी परीक्षाओं में निष्पक्ष मूल्यांकन सुनिश्चित करने के लिए अपनाई गई नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया एक बार फिर विवाद के केंद्र में है। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) ने दो दिवसीय परीक्षा और इसके परिणामों के मूल्यांकन में नॉर्मलाइजेशन पद्धति के उपयोग को लेकर अपना पक्ष स्पष्ट किया है।

आयोग ने नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया को बताया पारदर्शी

आयोग ने दावा किया है कि नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है और राधाकृष्णन समिति जैसी प्रतिष्ठित समितियों ने भी इसका समर्थन किया है। आयोग के अनुसार, इस प्रणाली का उद्देश्य विभिन्न पालियों में आयोजित परीक्षाओं के कठिनाई स्तर में अंतर को संतुलित करना है। इसके माध्यम से रोल नंबर को एक यूनिक कोड में परिवर्तित किया जाता है, जिससे मूल्यांकन निष्पक्ष और मानवीय हस्तक्षेप से मुक्त हो सके।

छात्रों की आपत्ति: निष्पक्ष मूल्यांकन पर सवाल

कुछ छात्र नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया के कारण चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे हैं। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के प्रवक्ता प्रशांत पांडेय ने कहा कि अलग-अलग शिफ्टों में प्रश्न पत्रों की कठिनाई में अंतर हो सकता है, जिसे नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया से पूरी तरह संतुलित नहीं किया जा सकता। छात्रों को आशंका है कि इससे परीक्षा परिणाम में भेदभाव हो सकता है, जिससे कानूनी विवाद पैदा हो सकते हैं और छात्रों की मेहनत और समय बर्बाद हो सकते हैं।

असंतुष्ट अभ्यर्थियों के सुझावों का स्वागत: आयोग

आयोग ने नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया से असंतुष्ट अभ्यर्थियों के सुझावों का स्वागत किया है। प्रवक्ता ने कहा कि अभ्यर्थी अपने सुधार सुझाव दे सकते हैं, जिन्हें विशेषज्ञ समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। यदि कोई बेहतर व्यवस्था आवश्यक होगी, तो उसे लागू किया जाएगा ताकि अभ्यर्थियों के हितों की रक्षा की जा सके।

स्केलिंग प्रणाली को किया गया समाप्त

छात्रों की आपत्तियों पर विचार करते हुए यूपीपीएससी ने पीसीएस मुख्य परीक्षा से वैकल्पिक विषयों को हटा दिया है। पहले स्केलिंग प्रक्रिया के कारण मानविकी विषयों और हिंदी माध्यम के छात्रों को कम अंक मिलते थे, जबकि विज्ञान विषयों और अंग्रेजी माध्यम के छात्रों को लाभ होता था। आयोग ने छात्रों की मांग को स्वीकारते हुए यह परिवर्तन किया है, जिससे चयन प्रक्रिया अधिक निष्पक्ष हो सके।

परीक्षाओं की शुचिता के लिए लिए गए फैसले

आयोग ने कहा कि परीक्षाओं की शुचिता बनाए रखने के लिए अभ्यर्थियों के सुझावों के आधार पर कई निर्णय लिए गए हैं। अभ्यर्थियों ने आग्रह किया था कि स्वयं-वित्तपोषित विद्यालयों को परीक्षा केंद्र न बनाया जाए और परीक्षा केंद्र जिला मुख्यालय से बहुत दूर न हों। इन सुझावों को उचित मानते हुए आवश्यक कदम उठाए गए हैं।

प्रारंभिक और साक्षात्कार प्रक्रिया में बदलाव

प्रारंभिक परीक्षा में सुधार करते हुए अब एक पद के सापेक्ष 13 गुना के बजाय 15 गुना अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा के लिए सफल घोषित किया जाएगा। वहीं, साक्षात्कार प्रक्रिया में एक पद के सापेक्ष दो के बजाय अब तीन अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जा रहा है।

साक्षात्कार प्रक्रिया में कोडिंग व्यवस्था

साक्षात्कार प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाने के लिए एक विशेष कोडिंग प्रणाली अपनाई गई है। प्रत्येक अभ्यर्थी को एक यूनिक कोड दिया जाता है, जिससे अंतिम समय तक यह जानकारी नहीं मिल पाती कि वह किस पैनल के सामने उपस्थित होगा। साक्षात्कार में बुलाए गए विशेषज्ञों की पहचान भी पूरी तरह गोपनीय रखी जाती है।

उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में फूलप्रूफ व्यवस्था

आयोग ने उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन को भी फूलप्रूफ बनाने की बात कही है। शुचितापूर्ण मूल्यांकन के लिए कापियों पर रोल नंबर के बजाय एक खास कोड अंकित होता है, ताकि परीक्षक को यह पता न चल सके कि वह किसकी उत्तर पुस्तिका जांच रहा है। इसके अलावा, वन टाइम रजिस्ट्रेशन (ओटीआर) प्रणाली भी लागू की गई है, जिसके तहत 22 महीनों में लगभग 19,34,027 रजिस्ट्रेशन किए गए हैं।

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