झांसी: यूपी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में शुक्रवार रात हुए भीषण अग्निकांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस हादसे में एसएनसीयू (स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट) में भर्ती 10 नवजात शिशुओं की दर्दनाक मौत हो गई और कई परिवारों की खुशियां एक पल में मातम में बदल गईं। घटना का खुलासा होते ही लापरवाही और सुरक्षा चूक की परतें खुलने लगीं। जिससे पता चला कि यह हादसा न केवल रोका जा सकता था बल्कि शॉर्ट सर्किट की पहली घटना को गंभीरता से लिया गया होता तो इतने मासूमों की जान भी बचाई जा सकती थी।
घटना का विवरण: कैसे हुई आगजनी
शुक्रवार की शाम करीब 5 बजे एसएनसीयू में पहली बार शॉर्ट सर्किट हुआ था। एसएनसीयू में मौजूद नर्सिंग स्टाफ और सुरक्षाकर्मियों को इस घटना की जानकारी दी गई थी। ललितपुर के जखौरा निवासी कृपाल सिंह ने बताया कि उनका नाती इस यूनिट में भर्ती था और उन्होंने स्वयं स्टाफ को इस बारे में सूचित किया था। दुर्भाग्यवश नर्सिंग स्टाफ ने इस घटना को गंभीरता से नहीं लिया और कोई ठोस कदम नहीं उठाए। शाम को आग मामूली थी इसलिए लापरवाही के चलते इसे अनदेखा कर दिया गया।
शाम की इस घटना का नतीजा यह हुआ कि रात करीब 10 बजे एक बार फिर शॉर्ट सर्किट हुआ और इस बार आग भयानक रूप से फैल गई। ऑक्सीजन कंसनट्रेटर में आग लगते ही पूरे एसएनसीयू में धुआं भर गया और आग की लपटों ने विकराल रूप धारण कर लिया। नर्सिंग स्टाफ में शामिल एक नर्स आग बुझाने की कोशिश करते हुए हल्की झुलस गई। उसने बाहर मदद के लिए शोर मचाया और चिल्लाई, “अंकल, आग लग गई है बच्चों को बाहर निकालो।” उस वक्त उपस्थित परिजन भी बच्चों को बचाने की कोशिश में जुट गए लेकिन आग इतनी तेज थी कि उन्हें बचाना मुश्किल हो गया।
मासूमों की मौत से परिवारों में मातम
इस घटना में मरने वाले बच्चों की पहचान कर ली गई है। मृतकों में झांसी के चार, ललितपुर के तीन, हमीरपुर के दो और जालौन का एक नवजात शामिल है। इन परिवारों के लिए यह एक भयानक त्रासदी है। हमीरपुर की नजमा की जुड़वा बेटियों की मौत ने पूरे गांव को शोक में डुबो दिया। वहीं ललितपुर की पूजा, संजना और भगवती के बेटे भी इस हादसे में जिंदगी की जंग हार गए। झांसी की पूनम की बेटी और संध्या के बेटे को भी इस भीषण अग्निकांड ने निगल लिया। इन बच्चों के माता-पिता की हालत रो-रोकर बेहाल है।
6 बच्चे अभी भी है लापता
लापता नवजातों का अब तक कोई सुराग नहीं इस हादसे में छह बच्चे अब भी लापता हैं और उनके परिजन इस उम्मीद में अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं कि उनके बच्चे सुरक्षित मिल जाएं। झांसी की संध्या व कंचन, बंगरा की कविता और राजगढ़ की नैंसी के नवजात शिशु का अब तक पता नहीं चला है। ललितपुर के फुलवारा की संजना और हमीरपुर के रिगवारा की सुखवती भी अपने बच्चों की खबर का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं। जिला प्रशासन ने हेल्पलाइन नंबर 6389831357 जारी किया है ताकि लोग इन बच्चों के बारे में जानकारी हासिल कर सकें।
डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक का दौरा
शनिवार की सुबह उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक अस्पताल पहुंचे। उन्होंने पीड़ित परिवारों से मिलकर उन्हें सांत्वना दी और मामले की गंभीरता को देखते हुए त्रिस्तरीय जांच के आदेश दिए। तीन अलग-अलग टीमें इस हादसे की जांच करेंगी। इनमें शासन स्तर से स्वास्थ्य विभाग की एक टीम, दूसरी टीम पुलिस और फायर ब्रिगेड की होगी और तीसरी मजिस्ट्रेट स्तर की टीम मामले की जांच करेगी। इन तीनों टीमों का मुख्य कार्य यह पता लगाना है कि आग कैसे लगी और इसमें किसकी लापरवाही थी। डिप्टी सीएम ने कहा कि दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी और किसी भी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
दो परस्पर विरोधी वर्जन: आग कैसे लगी?
आग लगने के कारणों पर विवाद जारी है। जिला प्रशासन के अनुसार ऑक्सीजन कंसनट्रेटर में शॉर्ट सर्किट के कारण यह हादसा हुआ। झांसी के जिलाधिकारी अविनाश कुमार ने कहा कि आग की मुख्य वजह शॉर्ट सर्किट थी और चीफ मेडिकल सुपरिंटेंडेंट सचिन महोर ने भी यही कारण बताया। हालांकि एक चश्मदीद भगवान दास ने दावा किया कि एक नर्स ने ऑक्सीजन सिलेंडर का पाइप जोड़ने के लिए माचिस की तीली जलाई थी जिससे आग भड़क उठी। हालांकि इस दावे की पुष्टि अन्य चश्मदीदों ने नहीं की है और अधिकांश लोग शॉर्ट सर्किट को ही आग का कारण मान रहे हैं।
फायर सेफ्टी में गंभीर लापरवाही और सुरक्षा चूक
इस हादसे में अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था में भारी लापरवाही उजागर हुई है। रिपोर्ट्स के अनुसार एसएनसीयू में फायर एक्सटिंग्विशर चार साल पहले ही एक्सपायर हो चुके थे। अग्नि सुरक्षा के लिहाज से यह एक गंभीर चूक है। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने यह भी बताया कि जब आग लगी थी तब फायर अलार्म सिस्टम ने काम नहीं किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि अस्पताल में फायर सेफ्टी ऑडिट या तो ठीक से नहीं हुआ था या उसे महज औपचारिकता के तौर पर किया गया था। नेशनल बिल्डिंग कोड 2016 के नियमों का उल्लंघन भी इस मामले में सामने आया है।
आग पर काबू पाने में देरी: बचाव कार्य में अव्यवस्था जब आग की सूचना फायर ब्रिगेड को दी गई तो दमकल की गाड़ियां करीब 20 मिनट बाद मौके पर पहुंचीं। तब तक आग विकराल रूप धारण कर चुकी थी। फायर ब्रिगेड के कर्मियों ने खिड़कियां तोड़कर आग बुझाने की कोशिश की थी मगर ऑक्सीजन कंसनट्रेटर के कारण आग को काबू में लाना मुश्किल हो गया। हालात बिगड़ते देख सेना को बुलाना पड़ा, जिसने रात 11:20 बजे पहुंचकर बचाव कार्य में सहायता की। सेना और फायर ब्रिगेड की संयुक्त कोशिशों से रात 11:50 बजे आग पर काबू पाया गया। मगर तब तक 10 नवजात शिशुओं की जान जा चुकी थी। आग बुझाने में देरी और बचाव कार्य की अव्यवस्था ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
मंडलायुक्त ने शुरू की जांच
मंडलायुक्त विमल कुमार दुबे ने शनिवार को ही जांच प्रक्रिया की शुरुआत कर दी। उन्होंने एसएनसीयू में ड्यूटी पर तैनात नौ डॉक्टरों, नर्सिंग स्टाफ, और पैरामेडिकल कर्मियों के बयान दर्ज किए। उनसे यह पूछा गया कि जब घटना हुई तब वे कहां थे, उन्होंने आग बुझाने के लिए क्या कदम उठाए और वहां उपलब्ध सुरक्षा इंतजाम क्या थे। यह भी जांच की जा रही है कि अस्पताल में आग से बचाव के उपकरण जैसे फायर एक्सटिंग्विशर और फायर अलार्म सिस्टम ठीक तरह से काम कर रहे थे या नहीं। सभी बयान दर्ज करने के बाद मंडलायुक्त अपनी रिपोर्ट तैयार करके शासन को भेजेंगे जिसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने लिया संज्ञान
इस भीषण घटना का संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। एनएचआरसी ने मुख्य सचिव और डीजीपी से एक सप्ताह के भीतर पूरी घटना की रिपोर्ट मांगी है। आयोग ने इसे गंभीर लापरवाही और मानवाधिकारों का उल्लंघन माना है। उन्होंने यह भी पूछा है कि जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? घायलों को कौन-कौन सी चिकित्सा सुविधाएं दी जा रही हैं और पीड़ित परिवारों को क्या मुआवजा प्रदान किया गया है? साथ ही यह भी जानना चाहा है कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हो इसके लिए क्या उपाय किए गए हैं।
पिछले हादसों से सबक क्यों नहीं लेते?
भारत में इस तरह के हादसे पहली बार नहीं हो रहे हैं। देश में अस्पतालों और सार्वजनिक स्थानों पर आग लगने की घटनाएं आम हो गई हैं। इसके बावजूद सुरक्षा नियमों का पालन नहीं किया जाता और हर बार यही चूक जानलेवा साबित होती है। उदाहरण के लिए, 2019 में गुजरात के सूरत में एक कोचिंग सेंटर में लगी आग में 22 छात्रों की मौत हो गई थी। इसके अलावा दिल्ली के बेबी केयर सेंटर में 2024 में हुई घटना, और गुजरात के राजकोट में टीआरपी गेम जोन में लगी आग प्रमुख हैं। इन घटनाओं के बावजूद अग्नि सुरक्षा नियमों का पालन सख्ती से नहीं किया जाता, जिससे बार-बार लोगों की जानें जा रही हैं।