संभल: काशी और मथुरा के बाद अब संभल की जामा मस्जिद का मामला भी कोर्ट में पहुंच गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु जैन ने अपने पिता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन और आठ अन्य व्यक्तियों की ओर से मंगलवार को सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के समक्ष एक याचिका दायर की। इसमें दावा किया गया है कि संभल की शाही जामा मस्जिद यहां के हरिहर मंदिर को ही तोड़कर बनाई गई थी। इस विवाद में नोएडा निवासी पार्थ यादव और वेदपाल सिंह के साथ संभल निवासी महंत ऋषिराज गिरि, राकेश कुमार, जीतपाल यादव, मदनपाल और दीनानाथ भी याचिकाकर्ता हैं।
डीएम और पुलिस अधीक्षक की मौजूदगी में हुई वीडियोग्राफी
कोर्ट ने इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश राघव को एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किया है जो मस्जिद का सर्वे करेंगे। सर्वे की पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी की जाएगी जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों की उपस्थिति सुनिश्चित की गई। मंगलवार शाम को डीएम डॉ. राजेंद्र पैंसिया और पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार विश्नोई ने भारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचकर मस्जिद की वीडियोग्राफी कराई।
सर्वे के दौरान संभल के सांसद जियाउर्रहमान बर्क और विधायक इकबाल महमूद के पुत्र सुहेल इकबाल भी वहां पहुंचे और अधिकारियों से बात की। याचिका में भारत संघ को प्रतिवादी बनाया गया है और कोर्ट 29 नवंबर को अगली सुनवाई करेगी। इस दिन एडवोकेट कमिश्नर अपनी रिपोर्ट पेश करेंगे, जिसमें मस्जिद की जांच के आधार पर तथ्य प्रस्तुत किए जाएंगे।
संभल में हुआ था भगवान कल्कि का जन्म
95 पृष्ठों की याचिका में यह दावा किया गया है कि धार्मिक ग्रंथों और विभिन्न प्रमाणों के अनुसार भगवान कल्कि का जन्म संभल में हुआ था। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह मंदिर तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया है। लोगों का कहना है कि सर्वे के बाद सच्चाई सामने आ जाएगी।
मस्जिद के अंदर 5 घंटे तक की गई वीडियोग्राफी
एडवोकेट कमिश्नर रमेश राघव ने बताया कि मंगलवार को लगभग पांच घंटे तक मस्जिद के मुख्य हाल और अन्य क्षेत्रों की वीडियोग्राफी की गई। कुछ अन्य हिस्सों की वीडियोग्राफी भी बाद में की जा सकती है। नौ बजे के करीब एडवोकेट कमिश्नर अपनी टीम के साथ वापस लौट गए।
मस्जिद के ऊपर लगाए गए आरोप है निराधार: जामा मस्जिद प्रबंधन समिति
इस मामले को लेकर जामा मस्जिद प्रबंधन समिति ने कहा है कि मस्जिद का उपयोग अनुचित तरीके से किए जाने का आरोप निराधार है। समिति के सदस्य जफर अली ने बताया कि उन्हें कोर्ट का समन मिल गया है। मस्जिद की वीडियोग्राफी कोर्ट के आदेश पर पूरी कर ली गई है और इसमें सभी ने सहयोग दिया है।
सपा सांसद ने 1991 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का किया जिक्र
सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क ने कहा कि 1991 में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि 1947 से पहले के सभी धार्मिक स्थलों को उनकी वर्तमान स्थिति में रखा जाएगा और उनमें कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग स्थिति को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं जबकि मस्जिद में कोई भी आपत्तिजनक चीज नहीं है।
जामा मस्जिद समिति के जफर अली ने यह भी बताया कि सात दिन का समय दिया गया था लेकिन विशेष परिस्थितियों की वजह से सर्वे पहले ही पूरा कर लिया गया। उन्होंने बताया कि मस्जिद के भीतर हुई प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं आई और टीम के साथ पूरा सहयोग किया गया।