उत्तर प्रदेश और दिल्ली के निवासियों के लिए वायु प्रदूषण एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बन गया है। एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक इन क्षेत्रों में हवा में मौजूद खतरनाक कणों के कारण औसत उम्र में पांच साल तक की कमी आ रही है। यह स्थिति न केवल गंभीर है बल्कि तुरंत सुधारात्मक कदम उठाने की मांग करती है।
वायु प्रदूषण: एक अदृश्य खतरा
दिल्ली और यूपी की हवा में घुले खतरनाक कण खासकर पीएम 2.5 व पीएम 0.1 लोगों के जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। रिपोर्ट अनुसार, यदि यूपी में पीएम 2.5 का स्तर राष्ट्रीय मानक (40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) तक लाया जाए तो यहां के लोगों की औसत उम्र 2.5 साल बढ़ाई जा सकती है और यदि यह स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक (5 माइक्रोग्राम) तक आ जाए तो उनकी उम्र में छह साल तक का इजाफा हो सकता है। इसी प्रकार दिल्ली में यह आंकड़ा 4.3 साल जबकि एनसीआर में 8.9 साल तक पहुंच सकता है।
उत्तर भारत में प्रदूषण चरम स्तर पहुंचा
रिपोर्ट के अनुसार भारत का उत्तरी क्षेत्र जहां 55 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं विश्व के सबसे प्रदूषित इलाकों में शामिल है। वायु प्रदूषण से औसत भारतीय की उम्र में 3.6 साल की कमी हो रही है। अन्य खतरों जैसे तंबाकू (1.5 साल) और गंदे पानी व खराब स्वच्छता (8.4 महीने) के मुकाबले वायु प्रदूषण का प्रभाव कहीं अधिक व्यापक और खतरनाक है।
इसके विपरीत लद्दाख, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, केरल और लक्षद्वीप भारत के सबसे स्वच्छ वायु वाले क्षेत्र हैं। यह स्पष्ट करता है कि प्रदूषण की समस्या क्षेत्रीय नीतियों और शहरीकरण के स्तर पर भी निर्भर करती है।
प्रदूषण घटने से इतनी बढ़ सकती है उम्र
क्षेत्र | औसत समय (वर्ष) | न्यूनतम समय (वर्ष) |
---|---|---|
दिल्ली-एनसीआर | 7.8 वर्ष | 4.3 वर्ष |
पंजाब | 4.6 वर्ष | 1.1 वर्ष |
हरियाणा | 5.2 वर्ष | 1.8 वर्ष |
उत्तर प्रदेश | 5.9 वर्ष | 2.5 वर्ष |
पश्चिम बंगाल | 3.8 वर्ष | 0.3 वर्ष |
बिहार | 5.5 वर्ष | 2.1 वर्ष |
पीएम 2.5: सबसे खतरनाक प्रदूषण कण
पीएम 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण होते हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक नुकसानदायक हैं। ये कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें आंखों से देख पाना असंभव है। बाल की मोटाई से भी 40 गुना छोटे ये कण फेफड़ों के निचले हिस्से में जाकर जमा हो जाते हैं।
पीएम 2.5 के कारण फेफड़ों के कैंसर, अस्थमा, दिल के दौरे, स्ट्रोक और यहां तक कि गर्भ न ठहरने जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। एक और खतरनाक कण पीएम 0.1 है जो फेफड़ों के जरिए खून में प्रवेश कर शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है।
चीन में प्रदूषण नियंत्रण की वजह से बढ़ी औसत उम्र
चीन के बीजिंग में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के ठोस प्रयास किए गए। सख्त नीतियों और तकनीकी उपायों के कारण वहां के लोगों की औसत उम्र में 2.2 साल की बढ़ोतरी हुई। यह दिखाता है कि सही कदम उठाए जाएं तो सुधार संभव है।
प्रदूषण के कारण और समाधान
दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण वाहनों का धुआं, निर्माण स्थलों से उठने वाली धूल, सड़कों की गंदगी, पराली जलाना और तंदूर जैसे स्रोत हैं। हालांकि पराली जलाने का प्रभाव कुछ समय तक रहता है लेकिन बाकी स्रोत पूरे साल प्रदूषण फैलाते हैं।
2016 में आईआईटी कानपुर ने वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए कुछ प्रमुख उपाय सुझाए थे जो निम्न है:
1. सड़कों को नियमित रूप से पानी से साफ करना।
2. निर्माण स्थलों पर धूल को नियंत्रित करना।
3. सड़कों के किनारे हरियाली बढ़ाना।
4. कचरा और पत्तियों को जलाने पर सख्त प्रतिबंध।
5. थर्मल पावर प्लांट्स में आधुनिक उत्सर्जन नियंत्रण उपकरणों का उपयोग।
दुर्भाग्य से इन सुझावों पर प्रभावी ढंग से अमल नहीं किया गया। प्रदूषण नियंत्रण के उपाय पूरे साल किए जाने चाहिए लेकिन अक्सर यह चर्चा सिर्फ सर्दियों के तीन महीनों तक सीमित रहती है।
वायु प्रदूषण से फेफड़ों को होता है सबसे ज्यादा नुकसान
प्रदूषण के कारण सांस से संबंधित बीमारियां और फेफड़ों के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इंडियन चेस्ट सोसाइटी ने बताया कि टीबी के मामले भी सबसे ज्यादा भारत में ही हैं।
विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि एमबीबीएस कॉलेजों से श्वास रोग विभाग को हटा दिया गया है। हिंदूराव मेडिकल कॉलेज के श्वास रोग विभाग के प्रमुख डॉ. अरुण मदान के अनुसार किसी भी अस्पताल की ओपीडी में 50% मरीज सांस संबंधी समस्याओं से पीड़ित होते हैं। फिर भी इस विभाग को हटाना चिंताजनक है।
समाज और सरकार की भूमिका
प्रदूषण नियंत्रण के लिए न केवल सरकार बल्कि समाज के हर वर्ग को सक्रिय भूमिका निभानी होगी। प्रदूषण नियंत्रण नीतियों को सख्ती से लागू करना, हरित ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना और नागरिकों को इस समस्या के प्रति जागरूक करना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
अगर सही समय पर कदम उठाए गए तो न केवल लोगों की उम्र बढ़ेगी, बल्कि अगली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर और स्वच्छ भविष्य सुनिश्चित किया जा सकेगा।