दिल्ली: कोरोना महामारी के बाद अचानक दिल के दौरे (सडन कार्डियो अटैक) के मामलों में तेजी से वृद्धि देखी गई है। हाल ही में इस समस्या के कारणों का पता लगाने में महत्वपूर्ण सफलता मिली है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस खोज से ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए प्रभावी दवा विकसित करने का रास्ता साफ हो गया है। यह खुलासा एम्स में आयोजित अंतरराष्ट्रीय फार्माकोलॉजी सम्मेलन और भारतीय फार्माकोलॉजी सोसायटी के 54वें वार्षिक सम्मेलन में हुआ।
सडन कार्डियो अटैक के कारण
विशेषज्ञों के अनुसार सडन कार्डियो अटैक के मामलों में बढ़ोतरी का मुख्य कारण मस्तिष्क से निकलने वाले कैटेकोलामाइन हार्मोन और शरीर में बढ़ता ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस है। सामान्य स्थिति में शरीर में एसी 2 प्रोटीन, N प्रोटीन को नियंत्रित करता है ये N प्रोटीन दिल को स्वस्थ बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। लेकिन जब ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस बढ़ता है तो दिल की धड़कन असामान्य रूप से तेज हो जाती है। इसे संतुलित करने के लिए मस्तिष्क से कैटेकोलामाइन हार्मोन का स्राव होता है।
लेकिन जब इस हार्मोन का उत्पादन अत्यधिक हो जाता है तो यह दिल की पंपिंग प्रक्रिया को बाधित कर देता है। इससे दिल अचानक काम करना बंद कर सकता है। जो सडन कार्डियो अटैक का कारण बनता है। विशेषज्ञों ने बताया कि कोविड के बाद ऐसे मामलों में वृद्धि हुई है लेकिन अधिकतर लोग (करीब 80%) इस स्थिति से अप्रभावित रहे। लगभग 20% मामलों में स्थिति गंभीर हो गई जबकि 5% मरीजों की हालत बेहद नाजुक रही।
कैंसर और दिल की बीमारी के बीच संबंध
कनाडा से आए भारतीय मूल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. एन. एस. ढल्ला ने सम्मेलन में कहा कि कैंसर मरीजों की 80% मौतों का कारण दिल की बीमारियां होती हैं। उन्होंने बताया कि कीमोथेरेपी जैसी कैंसर उपचार की दवाओं के साइड इफेक्ट्स भी दिल की बीमारियों को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दवाओं के साइड इफेक्ट्स को कम करने और अधिक सुरक्षित उपचार विकसित करने के लिए नई तकनीकों की आवश्यकता है।
दवाओं के विकास में प्रगति
सम्मेलन में विशेषज्ञों ने दवाओं के क्षेत्र में हो रही प्रगति पर भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि बोटॉक्स जैसी दवाओं को पहले केवल इंजेक्शन के रूप में दिया जाता था। लेकिन अब इन्हें क्रीम के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। एम्स के फार्माकोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. डी. एस. आर्य ने कहा कि नई दवाएं कैंसर कोशिकाओं को विशिष्ट प्रोटीन के आधार पर पहचानती हैं और केवल उन्हीं पर हमला करती हैं। इससे शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को कम से कम नुकसान होता है।
विदेशी दवाओं पर निर्भर नहीं रहेगा भारत?
सम्मेलन में इस बात पर भी चर्चा हुई कि भारत में दवाओं के विकास की अपार संभावनाएं हैं। यदि युवा वैज्ञानिक और शोधकर्ता इस दिशा में ध्यान केंद्रित करें तो भारत अपनी आवश्यकताओं के लिए विदेशी दवाओं पर निर्भर नहीं रहेगा। स्थानीय रूप से विकसित दवाएं न केवल अधिक सुरक्षित और प्रभावी होंगी बल्कि सस्ती भी होंगी।
भारत में मौजूद है जड़ी-बूटियों का भंडार
विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि भारत में प्राचीन काल से ही जड़ी-बूटियों का भंडार मौजूद है। इनका उपयोग करके कई बीमारियों के लिए नई दवाएं विकसित की जा सकती हैं। जड़ी-बूटियों पर आधारित दवाएं न केवल प्राकृतिक होती हैं बल्कि इनके साइड इफेक्ट्स भी कम होते हैं।
सम्मेलन में केंद्रीय राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव और अन्य विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि शोध और विकास को प्रोत्साहन देने के लिए ठोस नीतियां बनाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज की वैज्ञानिक खोजें कल की प्रभावी दवाओं का आधार बन सकती हैं। 30 नवंबर तक चलने वाले इस सम्मेलन में विभिन्न देशों के विशेषज्ञों ने अपने विचार साझा किए और भारत में दवा अनुसंधान को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए मिलकर काम करने का संकल्प लिया