इलाहाबाद: उत्तर प्रदेश पीसीएस और आरओ-एआरओ परीक्षाओं को लेकर करीब 16 लाख अभ्यर्थी नाराज हैं। उन्होंने यूपी लोक सेवा आयोग के निर्णय का विरोध किया है, जिसमें पहली बार इन परीक्षाओं को दो दिन में कराने का फैसला लिया गया है। नाराज अभ्यर्थी एक ही दिन में परीक्षा कराने की मांग कर रहे हैं और अगर ऐसा नहीं हुआ, तो वे भर्ती प्रक्रिया को अदालत में घसीटने की धमकी दे रहे हैं।
यूपी सरकार फिलहाल प्रयागराज में महाकुंभ की तैयारियों में जुटी है। इस संदर्भ में सिविल सेवाओं की तैयारी कर रहे सिद्धांत श्रीवास्तव सवाल उठाते हैं कि जब सरकार महाकुंभ के दौरान एक दिन में 3 करोड़ श्रद्धालुओं की व्यवस्था कर सकती है, उन्हें सुरक्षा प्रदान कर सकती है और फिर घर वापस भेज सकती है, तो एक दिन में 10 लाख युवाओं की परीक्षा क्यों नहीं करा सकती?
परीक्षा की तारीखों की घोषणा
यूपी लोक सेवा आयोग ने 5 नवंबर को पीसीएस और आरओ-एआरओ परीक्षा की तारीखों की घोषणा की थी। पीसीएस प्री परीक्षा 7 और 8 दिसंबर को दो शिफ्ट में होगी, जबकि आरओ-एआरओ प्री परीक्षा 22 और 23 दिसंबर को तीन शिफ्ट में होगी। पीसीएस परीक्षा के लिए 5,76,154 और आरओ-एआरओ के लिए 10,76,004 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया है।
आयोग ने बताया कि एक साथ परीक्षा कराने के लिए 1758 केंद्रों की जरूरत है, पर 41 जिलों में केवल 978 केंद्र ही योग्य मिले, जो कुल 4,35,074 अभ्यर्थियों को ही समायोजित कर सकते हैं। इसलिए, परीक्षा को दो दिन में कराने का निर्णय लिया गया।
छात्रों का विरोध और उनकी मांगें
लखनऊ के कपूरथला इलाके में सरकारी परीक्षा की तैयारी कर रहे मयंक शुक्ला का कहना है कि आयोग और सरकार अपनी मनमानी कर रही है। उनका कहना है कि नॉर्मलाइजेशन प्रणाली अन्य राज्यों में लागू नहीं है। मयंक बताते हैं कि नॉर्मलाइजेशन में सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह तय करना मुश्किल होगा कि कौन सा पेपर कठिन था और कौन सा आसान। इससे हो सकता है कि कोई प्रतिभाशाली छात्र नॉर्मलाइजेशन के कारण फेल हो जाए।
मयंक यह भी कहते हैं कि केवल 41 जिलों में परीक्षा केंद्र बनाना उचित नहीं है। बाकी 34 जिलों में भी सरकारी मेडिकल कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, जिन्हें केंद्र बनाया जा सकता है। पेपर लीक का मुद्दा उठाते हुए वे बताते हैं कि समस्या परीक्षा केंद्रों से नहीं, बल्कि प्रिंटिंग प्रेस से रही है। इस बार भी पेपर प्राइवेट प्रेस से छप रहा है, जिससे फिर से पेपर लीक का खतरा बना हुआ है।
टीचर्स और विशेषज्ञों के विचार
रेस आईएएस कोचिंग के टीचर नवनाथ मिश्रा का कहना है कि अभ्यर्थी अपनी परेशानियों को देख रहे हैं, लेकिन सरकार के सामने भी चुनौती है। इतने बड़े फॉर्म संख्या को देखते हुए, पारदर्शिता बनाए रखने के लिए दो दिन में परीक्षा कराना आवश्यक है। मिश्रा ने बताया कि 2013 से पहले स्केलिंग प्रक्रिया लागू थी, जिसमें कम-ज्यादा नंबर का विवाद होता था। अब सरकार उचित प्रशासनिक व्यवस्था देने की कोशिश कर रही है, और इस व्यवस्था को नॉर्मलाइजेशन के जरिए लागू करना चाहती है।
आयोग के तर्क पर छात्रों ने दिए ये जवाब
1. आयोग का तर्क: पेपर लीक की आशंका के कारण केवल सरकारी कॉलेजों को ही केंद्र बनाया जाएगा, और ये जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर के भीतर होंगे।
छात्रों का जवाब: पिछली बार पेपर प्रिंटिंग प्रेस से लीक हुआ था, न कि किसी परीक्षा केंद्र से। जो छात्र दूसरे जिले में परीक्षा देने जा सकता है, वह 30-40 किलोमीटर दूर भी जा सकता है।
2. आयोग का तर्क: नॉर्मलाइजेशन प्रणाली अन्य राज्यों, जैसे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, और केरल में भी लागू है और यह किसी भी अभ्यर्थी के साथ अन्याय नहीं करेगी।
छात्रों का जवाब: यह तय करना मुश्किल है कि कौन सा पेपर कठिन था और कौन सा सरल। यह प्रक्रिया विवाद को जन्म दे सकती है और भर्ती अदालत में फंस सकती है।
3. आयोग का तर्क: सुरक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए परीक्षा केवल 41 जिलों में कराई जाएगी।
छात्रों का जवाब: सरकार महाकुंभ में एक दिन में 3 करोड़ श्रद्धालुओं की व्यवस्था कर सकती है, तो पूरे यूपी में 10 लाख छात्रों की परीक्षा एक साथ क्यों नहीं हो सकती?
इतने अभ्यर्थियों की एक दिन में परीक्षा कराना संभव नही:आयोग
आयोग के सचिव अशोक कुमार का कहना है कि इतने अभ्यर्थियों की एक दिन में परीक्षा कराना संभव नहीं है। केंद्र चुनने में विश्वविद्यालय, मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों को शामिल किया गया, लेकिन पर्याप्त संख्या में केंद्र नहीं मिल सके। नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दी है, जिससे यह पूरी तरह वैध है।
क्या है नॉर्मलाइजेशन?
नॉर्मलाइजेशन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका उपयोग विभिन्न शिफ्टों में होने वाली परीक्षाओं के परिणामों में समानता लाने के लिए किया जाता है। जब कोई परीक्षा एक ही दिन में एक शिफ्ट में आयोजित होती है, तो नॉर्मलाइजेशन की जरूरत नहीं होती, क्योंकि सभी अभ्यर्थियों को एक ही प्रश्न पत्र मिलता है। लेकिन जब परीक्षा अलग-अलग शिफ्टों में होती है, तो हर शिफ्ट का प्रश्न पत्र एक समान कठिन नहीं हो सकता। इसमें मामूली अंतर हो सकता है, जिससे कुछ शिफ्ट के अभ्यर्थियों को कठिन पेपर के कारण नुकसान हो सकता है और कुछ को सरल पेपर के कारण फायदा मिल सकता है।
नॉर्मलाइजेशन के माध्यम से इस अंतर को संतुलित करने की कोशिश की जाती है ताकि सभी अभ्यर्थियों को निष्पक्ष रूप से मूल्यांकित किया जा सके। यह प्रक्रिया एक विशेष गणितीय फॉर्मूले के जरिए की जाती है, जिसमें हर शिफ्ट के पेपर के कठिनाई स्तर को ध्यान में रखते हुए अभ्यर्थियों के अंकों को समायोजित किया जाता है।
नॉर्मलाइजेशन का फॉर्मूला
इस प्रक्रिया में एक विशेष फॉर्मूला अपनाया जाता है, जो प्रतिशत अंकों (Percentile Score) के आधार पर तय किया जाता है। यह फॉर्मूला कठिनाई स्तर के अंतर को संतुलित करता है, ताकि सभी परीक्षार्थियों को निष्पक्षता से आंका जा सके। फॉर्मूला के जरिए हर शिफ्ट के अभ्यर्थियों के स्कोर को प्रतिशत में स्केल किया जाता है।
फॉर्मूला-
Pij={(Number of candidates in shift (j) having raw scores less than or equal to Xij)÷Nj}×100
जहां:
Pij = Percentile score
Xij = Actual marks (raw score) of a candidate
Nj = Total Number of Candidates appearing in a shift
The percentile score may be computed by rounding off to six places of decimal.
नॉर्मलाइजेशन के फायदे
1. समान अवसर: नॉर्मलाइजेशन यह सुनिश्चित करता है कि सभी अभ्यर्थियों को समान अवसर मिले, चाहे उनकी शिफ्ट का पेपर कठिन हो या आसान। इससे परीक्षा प्रणाली में निष्पक्षता आती है।
2. कठिनाई स्तर में संतुलन: यह प्रक्रिया शिफ्टों के कठिनाई स्तर के अंतर को दूर करती है, जिससे सभी अभ्यर्थियों को उचित अंक मिलते हैं।
3. बड़ी परीक्षाओं में उपयोगी: बड़े पैमाने पर होने वाली परीक्षाओं में, जहां सभी अभ्यर्थियों को एक ही दिन में बैठाना संभव नहीं होता, वहां यह एक व्यवहारिक समाधान है।
4. अदालती विवादों से बचाव: यदि नॉर्मलाइजेशन पारदर्शी हो और सभी को इसकी प्रक्रिया समझ में आए, तो यह कानूनी विवादों से बचा सकता है।
5. अंतरराष्ट्रीय मान्यता: यह प्रणाली कई देशों और परीक्षाओं में अपनाई जा चुकी है, जिससे इसकी विश्वसनीयता प्रमाणित होती है।
नॉर्मलाइजेशन के नुकसान
1. विवाद की संभावना: नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया जटिल है, जिससे अभ्यर्थियों में भ्रम और असंतोष पैदा हो सकता है। जब परिणाम उम्मीद के मुताबिक नहीं आते, तो यह विवादों को जन्म दे सकती है।
2. समायोजन में कठिनाई: यह तय करना मुश्किल हो सकता है कि किसी शिफ्ट का पेपर कितना कठिन या आसान था। सटीकता की कमी के कारण कुछ अभ्यर्थियों को नुकसान हो सकता है।
3. विषम परिणाम: कभी-कभी नॉर्मलाइजेशन के कारण अजीब परिणाम देखने को मिलते हैं, जैसे कि अच्छे अंक पाने वाले छात्र असफल हो सकते हैं और कम अंक पाने वाले सफल हो सकते हैं।
4. मनोवैज्ञानिक दबाव: अभ्यर्थियों को यह चिंता रहती है कि उनके अंक नॉर्मलाइजेशन के कारण घट सकते हैं, जिससे उनकी मानसिक स्थिति प्रभावित हो सकती है।
5. समझने में कठिन: यह प्रक्रिया गणितीय रूप से जटिल है और कई छात्रों तथा अभिभावकों के लिए इसे समझना आसान नहीं होता, जिससे असंतोष बढ़ सकता है।
6. विश्वास की कमी: छात्रों में यह भावना हो सकती है कि नॉर्मलाइजेशन उनके मेहनत से प्राप्त अंकों को सही ढंग से प्रदर्शित नहीं कर रहा, जिससे परीक्षा प्रणाली में उनका विश्वास कम हो सकता है।