बीते दिनों नोएडा प्राधिकरण के खिलाफ हुए हल्ला बोल मे अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन करने वाले कई किसानों के खिलाफ अनेक गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हुऐ है यह बात सामने निकलकर आ रही है, मंगलवार को इस बाबत एफआइआर की जानकारी नामजद कुछ किसानों तक पहुंच भी गई है। मुकदमे के लिए 23 जनवरी की तारीख काे ही क्यों चुना गया यह तर्क बताने में जिम्मेदार फिलहाल नाकाम हैं। पुलिस का कहना है कि तहरीर मिलने के बाद मुकदमा दर्ज किया गया था।
एक तरफ नोएडा प्राधिकरण के खिलाफ किसानों का धरना प्रदर्शन चरम पर था तो वहीं दूसरी तरफ 22 जनवरी को अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर में भी प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम आयोजन भी था। किसान सड़क पर न आ जाएं इसलिए 18 जनवरी को पुलिस तथा किसानों के बीच तालाबंदी को लेकर हुई भिड़ंत के बाद तत्काल रूप से कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। दरअसल प्राधिकरण के बाहर करीबन 700 लोगों ने एकत्रित होकर नोएडा प्राधिकरण मुर्दाबाद के नारे लगाए। जिसके बाद प्राधिकरण ने उनसे शांति बनाए रखने और बात करने के लिए कहा किंतु सभी ने विधि विरुद्ध एकत्रित होकर एक स्वर में प्राधिकरण से कोई बात न करने की आवाज उठाई और प्राधिकरण में घुसने तथा तालेबंदी की धमकी देने की बात कही। उनका कहना था कि आज लड़ाई आर पार की होगी। ऐसे कथित आरोप भी सामने आ रहे है।
आरोप है कि किसान नेता सुखवीर खलीफा, महेंद्र और जयवीर आदि ने भीड़ को भड़काने का काम किया। आस पास के दुकानदारों को भी दूर रहने की सलाह देते हुए मारपीट कर भागने की ओर इशारा करते हुए कई लोग प्राधिकरण के गेट नंबर 4 पर चढ़ गए और ताला लगाने की कोशिश करने लगे। अचानक बैरियर के टूटने से लोग नीचे गिर गए। जिस वजह से गेट पर लगे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया गया तथा साथ में पुलिसकर्मियों पर जानलेवा हमला भी किया गया।
साजिश के तहत सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। जिसके बाद शासन-प्रशासन के बीच लंबी चली मंत्रणा में यह तय किया गया कि बवाल मचाने वाले किसानों के खिलाफ 22 जनवरी के बाद मुकदमा दर्ज किया जाए।
इसके बाद 23 जनवरी को ही प्राधिकरण के अवर अभियंता अरुण वर्मा द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र को आधार बनाकर कोतवाली फेज-वन में 46 नामजद और करीब 600-700 अज्ञात किसानों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। एफआइआर की जानकारी किसी को भी न लगे, इसलिए आनलाइन से लेकर आफलाइन तक सभी रास्ते भी बंद कर दिए गए, लेकिन मामला ज्यादा दिन छिप नहीं सका।
बीते मंगलवार को एफआइआर की जानकारी जब नामजद कुछ किसानों तक पहुंच गई, तब मुकदमे के लिए 23 जनवरी की तारीख काे ही क्यों चुना गया, यह तर्क बताने में आला अधिकारी नाकाम हैं। एक माह के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इससे सरकारी तंत्र की मंशा पर ही अब सवाल खड़े हो रहे हैं। किसानों के खिलाफ किस उद्देश्य से मुकदमा लिखा गया है, यह भी साफ नहीं हो पा रहा है। DCP विद्या सागर मिश्र का कहना है कि तहरीर मिलने के बाद पुलिस द्वारा मुकदमा दर्ज किया गया है। जिसकी विवेचना प्रचलित है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 153A ‘धर्म, जाति, जन्म स्थान तथा निवास और भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के मध्य शत्रुता को बढ़ावा देने और सद्भाव बिगाड़ने’ के मामले में लगाई जाती है। इसमें 3 वर्ष तक के कारावास या जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान है।
इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जो किसी सार्जनजिक स्थान पर अथवा किसी भी ऐसे स्थान पर सार्वजनिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय झंडे एवं भारत के संविधान या उसके किसी भी भाग को जलाता है, विकृत करता है, उसका अपमान करता है या कुचलता है तो दोषी पाए जाने पर उसे तीन वर्ष तक के कारावास, जुर्माना या दोनों से भी दंडित किया जा सकता है।