दिल्ली: 27 सितंबर, 2024 की तारीख को दिल्ली के बसंतकुंज के रंगपुरी इलाके में मल्टीस्टोरी बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर बने फ्लैट नंबर C-4 में से तेज बदबू आ रही थी। जिस वजह से आसपास रहने वाले लोगों के द्वारा इसकी जानकारी बिल्डिंग के केयरटेकर को बात बताई गई। तत्पश्चात केयरटेकर के द्वारा यह जानकारी मकान मालिक को बताई गई और फिर पुलिस को भी बुलाया गया। मौके पर पहुंचे पुलिसवालों के द्वारा फ्लैट का दरवाजा खोला गया। जहां देखा गया कि फ्लैट के अंदर 5 लाशें सड़ रही थीं। यह सभी लाशें फ्लैट में रहने वाले हीरालाल शर्मा तथा उनकी 4 बेटियों की थीं।
पुलिस मान रही है सामूहिक आत्महत्या:
दरअसल एक कमरे में 46 साल के हीरालाल शर्मा तथा दूसरे कमरे में 24 साल की निक्की, 26 साल की बेटी नीतू, 23 साल की नीरू तथा 20 साल की निधि की भी डेडबॉडी थी। वहीं पुलिस को फ्लैट से सल्फास के 3 पैकेट भी मिले हैं, इसलिए पुलिस इसे सामूहिक आत्महत्या मान रही है।ऐसा बताया जाता है कि हीरालाल की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी। वह अपनी पत्नी की मौत के बाद किसी से मिलते भी नहीं थे। साथ ही बेटियों के इलाज पर भी पैसा खर्च हो रहा था। यह सब संभालने में उनको बहुत मुश्किलें आ रही थी। इसलिए भी वह काफी डिप्रेशन में थे।
बेड पर लाइन से रखीं थीं बेटियों की डेडबॉडी तथा मिठाई लेकर घर आए थे हीरालाल:
आपको बता दें कि चारों लड़कियों के शव 1 ही बेड पर लाइन से रखे मिले थे। इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि हीरालाल के द्वारा पहले तो अपनी बेटियों को जहर देने के बाद उनकी डेडबॉडी को बिस्तर पर रखी होंगी। फिर खुद दूसरे कमरे में जाकर जहर पी लिया होगा।वहीं हीरालाल की तीसरे नंबर की बेटी नीरू तो देख भी नहीं सकती थी तथा चौथी बेटी निधि भी विकलांग थी। इसलिए हीरालाल अपनीबबेटियों को इलाज के लिए एक अस्पताल से लेकर दूसरे अस्पताल ले जाया करते थे।हीरालाल का बीते 24 सितंबर का एक CCTV फुटेज भी सामने आया है। इसमें वह घर जाते हुए दिख रहे हैं। उनके हाथ में मिठाई का डिब्बा तथा फूल भी थे। पुलिस के मुताबिक सभी बेटियों के गले तथा हाथों में नया कलावा बंधा हुआ था। पुलिस सूत्रों का यह भी कहना है कि हो सकता है हीरालाल के द्वारा बेटियों को मारने से पहले पूजा की गई हो।
पत्नी की कैंसर से हो गई थी मौत, दिसंबर में छोड़ दी थी नौकरी:
बता दें कि हीरालाल बिहार के छपरा जिले के रहने वाले थे तथा करीब 30 वर्षों से दिल्ली में ही रह रहे थे। किराए के मकान में रहकर ही वह कारपेंटर का काम भी करते थे। वह साल 1996 से इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर, वसंत कुंज में ही नौकरी कर रहे थे।अगस्त साल 2023 में हीरालाल की पत्नी कांतिदेवी की मौत कैंसर से हो गई थी। इसके पश्चात हीरालाल काफी डिप्रेशन में चले गए थे। वहीं दिसंबर, 2023 में उन्होंने अपनी नौकरी भी छोड़ दी थी। जिसके बाद पिछले 9 महीने से वह बिना नौकरी के ही घर का खर्च चला रहे थे। हीरालाल के बैंक खाते में फिलहाल 200 रुपए ही मिले हैं।
गांव में परिवार से बंद थी बातचीत, दादा ने नहीं देखा कभी पोतियों को:
हीरालाल शर्मा छपरा जिले के अपने गांव घोघिया से भी एकदम कटे हुए थे। वह शादी के 1 साल बाद ही अपनी पत्नी के साथ दिल्ली को आ गए थे। इसके बाद वह सिर्फ एक बार ही मां के श्राद्ध पर अपने गांव गए थे। आखिरी बार साल 2008 में 3 दिनों के लिए वह घोघिया गए थे। दरअसल उनके पिता मरईलाल शर्मा यह बताते हैं कि उनकी चारों पोतियां इतनी बड़ी हो गई थीं, लेकिन उन्होंने आज तक उनमें से किसी को कभी नहीं देखा था।
पड़ोसी बोले कि पत्नी की मौत के बाद हीरालाल रहते थे गुमसुम:
घटना के बाद हीरालाल के फ्लैट को पुलिस के द्वारा सील कर दिया गया है। वहीं घर से अब भी लगातार बदबू आ रही है। पड़ोसी भी कुछ भी बोलने से हिचक रहे हैं। लेकिन फ्लैट के ठीक सामने रहने वाली एक महिला बताती हैं कि हीरालाल चुपचाप ही आते-जाते थे और कभी नजर उठाकर भी नहीं देखते थे। पत्नी की मौत के पश्चात वह गुमसुम रहने लगे थे। उनकी पत्नी तो पड़ोसियों से थोड़ी-बहुत बात भी कर लेती थीं। लेकिन उनके जाने के बाद उनका परिवार पूरी तरह से कट गया था। पड़ोसी बताते हैं कि परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं लगती थी। हीरालाल के घर पर कोई दोस्त या रिश्तेदार नहीं आते थे। उनका एक भाई कभी-कभार यह आता था, लेकिन तब भी हीरालाल का परिवार दरवाजा नहीं खोलता था।
क्या बताया एक महिला पड़ोसी ने:
हीरालाल की पड़ोसी एक महिला ने बताया कि उनकी पत्नी पड़ोसियों से बात करती रहती थीं। हालांकि हम लोगों को यह बिल्कुल भी पता नहीं चला कि उनकी मौत कैसे हुई थी।'वहीं एक दूसरी पड़ोसी पायल के द्वारा बताया गया है कि हीरालाल अपनी बेटियों को गोद में लेकर ही आते-जाते थे। वहीं उनकी पत्नी से सिर्फ एक बार ही आमना-सामना हुआ था, लेकिन कोई बात नहीं हुई थी।
बेटियों के लिए ले जाते थे चिप्स, घर में न के बराबर था राशन:
दरअसल हीरालाल के घर के सामने एक जनरल स्टोर चलाने वाले पिंटू जी कहते हैं कि वह कभी-कभार सामान तो लेने आते थे। इसके अलावा कोई बातचीत भी नहीं होती थी। सिर्फ सामान लिया, पैसे दिए तथा चले गए। बच्चियां भी नहीं आती थीं, पत्नी के बारे में तो मुझे कोई आइडिया ही नहीं है।वहीं कुछ पड़ोसी बताते हैं कि हीरालाल अपनी बेटियों के लिए चिप्स तथा चॉकलेट भी लेकर जाते रहते थे। पुलिस सूत्रों के द्वारा भी यह बताया गया है कि उनके घर से बहुत कम मात्रा में राशन मिला है।
हीरालाल 4 भाई थे, लेकिन किसी से कोई बातचीत नहीं थी:
दरअसल हीरालाल के अन्य 3 भाई हैं। वह सभी कारपेंटर हैं। एक भाई मोहन गाजियाबाद में रहता है, दूसरे राजकुमार मानेसर तथा तीसरे योगेंद्र महिपालपुर में ही रहते हैं। इतने पास होकर भी वह सब हीरालाल से दूर रहे। क्योंकि हीरालाल तथा उनके परिवार का न तो उन लोगों से मिलना-जुलना था और न ही पड़ोसियों से कोई मतलब रहता था।हीरालाल तथा उनकी बेटियों का पोस्टमॉर्टम दिल्ली के ही सफदरजंग हॉस्पिटल में हुआ था। यहां मीडिया को हीरालाल के भाई योगेंद्र मिले। दरअसल योगेंद्र एक पैर से विकलांग हैं तथा अपने भाई एवं भतीजियों की मौत के सवाल पर वह कुछ भी नहीं बोल पाए वहीं योगेंद्र की पत्नी गुड़िया के द्वारा बताया गया कि हीरालाल ने पिछले करीब 5-6 महीने से सबसे बातचीत बंद कर दी थी। वह कहती हैं कि मेरे पति उनसे कई बार मिलने जाते थे, लेकिन वह दरवाजा ही नहीं खोलतेथे। पहले तो वह खुद बुलाते थे, तो मैं उनके घर को चली जाती थी, बातचीत भी होती थी। लेकिन वह लोग कभी हमारे घर नहीं आए। मैं वहां अपने बच्चों को लेकर जाती थी। उनकी लड़कियां भी हमारे लिए खाना बनाकर रखती थीं।
हीरालाल की पत्नी के द्वारा भी मायके से बना ली गई थी दूरी:
उनके रिश्तेदारों के मुताबिक, सिर्फ हीरालाल ही नहीं बल्कि उनकी पत्नी कांतिदेवी के द्वारा भी शादी के बाद अपने परिवार से दूरी बना ली गई थी। कांतिदेवी के भाई नागेंद्र शर्मा जी बताते हैं कि हीरालाल पहले से ही ऐसे थे। वह बेहद कम मिलते-जुलते थे। दीदी की मौत के बाद वह और हुई ज्यादा गुमसुम हो गए थे।वहीं नागेंद्र जी बताते हैं कि इसी दौरान उन लोगों के द्वारा घर भी बदल लिया गया था, लेकिन नया घर कहां पर लिया, यह किसी को नहीं बताया। दीदी के गुजरने के पश्चात हमारा भी उनसे लिंक टूट गया। उससे पहले तो उनको कोई आर्थिक दिक्कत नहीं थी।
छुट्टी के बाद कभी काम पर नहीं लौटे:
वहीं हीरालाल 28 साल से इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर में ही काम कर रहे थे। वह 38 हजार रुपए महीना सैलरी पाते थे। इंस्टीट्यूट के HR के मुताबिक वह पिछले साल सितंबर माह में हीरालाल बेटी को यूरोलॉजी विभाग में दिखाने लाए थे।जिसके बाद दिसंबर माह में हीरालाल 15 दिन की छुट्टी पर गए तथा फिर कभी काम पर नहीं लौटे। हॉस्पिटल मैनेजमेंट का यह दावा है कि उन्होंने हीरालाल को चंडीगढ़ में अपनी बच्चियों के इलाज का ऑफर भी दिया था, लेकिन उन्होंने कोई मदद नहीं ली। हीरालाल के भाई योगेंद्र भी साल 2003 से साल 2016 तक यहां कारपेंटर का काम कर चुके हैं।बता दें कि साउथ वेस्ट दिल्ली के DCP रोहित मीणा के अनुसार उनकी पत्नी की मौत के पश्चात से ही हीरालाल काफी परेशान थे। उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहद खराब हो गई थी। उनके अकाउंट में सिर्फ 200 रुपए ही बचे हुए थे।
क्या कहा इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर चेतन राणा ने:
केस के इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर चेतन राणा जी बताते हैं कि अब तक की जांच के मुताबिक ही हीरालाल के द्वारा एक महीने पहले अपने अकाउंट से 10-20 हजार रुपए निकाले गए थे। उनके घर में राशन भी नहीं आ रहा था, न ही कोई खाना बन रहा था। परिवार के लोग सिर्फ चिप्स वगैरह ही खा रहे थे। हालांकि उनका PF अकाउंट अभी तक चेक नहीं किया गया है। उन्होंने सल्फास कहां से ली थी, इसकी भी इन्क्वायरी नहीं हो पाई है।
साइकोलॉजिस्ट बोलीं कि सामूहिक आत्महत्या लंबे समय के फ्रस्ट्रेशन का है नतीजा:
पुलिस हीरालाल तथा उनकी बेटियों की मौत को सामूहिक आत्महत्या ही मान रही है। इसके पीछे आर्थिक समस्या के साथ ही व्यावहारिक तथा मानसिक वजहें भी रहीं हैं। इस पर साइकोलॉजिस्ट डॉ. बिंदा सिंह ने भी पूरी जानकारी दी है।वह कहती हैं कि हीरालाल एक्यूट डिप्रेशन में चले गए थे। वह परिवार पूरी तरह से सोशली आइसोलेट हो चुका था । इनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि को देखकर तो यही लगता है कि वह काफी फ्रस्ट्रेशन में भी जी रहे थे। उन्होंने अपनी अलग दुनिया बना रखी थी तथा किसी से न मिलने की वजह से ही अपनी फीलिंग शेयर नहीं कर पा रहे थे।उन्होंने बताया कि एक्यूट डिप्रेशन में यह लगता है कि मैं क्यों ही जी रहा हूं। मेरे जीने का क्या मकसद है, अगर मैं दुनिया से चला जाऊंगा तो शायद शांति मिलेगी। हो सकता है कि उनको भी ऐसे विचार आते रहे हों तथा उन्हें लगता हो कि यदि मैं जिंदा नहीं रहूंगा तो मेरी बेटियों को कौन देखेगा। इसलिए सभी को ही खत्म कर दो।हीरालाल जितिया के दिन मिठाई भी लाए थे। उन्हें बेटियों से बेहद प्यार था। वह नहीं चाहते थे कि उनके बाद उनकी बेटियां जिंदा रहें। दरअसल विकलांग बच्चियों को संभालना भी उनके लिए काफी मुश्किल था। वह समाज से भी इसलिए कटे हुए होंगे क्योंकि उन्हें लगता था कि शायद कोई भी उनकी मदद नहीं कर सकता है।
क्या सुसाइड प्रीप्लांड था, के सवाल पर डॉ. बिंदा सिंह का जवाब:
उनसे यह पूछने पर कि क्या सुसाइड प्रीप्लांड था, डॉ. बिंदा सिंह अपना जवाब देती हैं कि डिप्रेशन में इंसान का इमोशन पर कोई भी कंट्रोल नहीं रहता। इसलिए जरूरी नहीं कि यह सुसाइड प्रीप्लांड हो । शायद उनका परिवार कोई मदद करने वाला नहीं होगा। यह कोई एक दिन का फैसला भी नहीं होता है, यह लंबे समय के फ्रस्ट्रेशन का ही नतीजा होता है।उन्होंने कहा कि कोई भी रिश्तेदार सिर्फ उसी से पूछता है, जो सक्षम होता है। उनसे ही बात करते रहना चाहिए। बात करने से बड़ी बड़ी समस्याओं का हल भी निकलता है।वहीं एक स्पेशल मेडिकल बोर्ड के द्वारा सभी मृतकों का पोस्टमॉर्टम भी किया गया है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक इस पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में हीरालाल तथा उनकी बेटियों की मौत की मुख्य वजह जहर खाना ही है। हालांकि पूरे परिवार के खत्म होने की असली क्या वजह है, यह पता तो अभी तक नहीं चला है। जिसके लिए पुलिस लगातार अपनी जांच कर रही है।