नहीं रद्द होगा 112 वकीलों का पंजीकरण: उत्तरप्रदेश बार काउंसिल स्वयं करेगी जांच, 30 जुलाई को दोबारा रिपोर्ट आने पर ही होगी कार्यवाही?
नहीं रद्द होगा 112 वकीलों का पंजीकरण

उत्तर प्रदेश बार काउंसिल लखनऊ पुलिस की ओर से कथित तौर पर 112 वकीलों पर भूमि हड़पने और धमकी देने से जैसे आरोपों की जांच करने के लिए अपनी समिति गठित करने की तैयारी में है।

अधिवक्ता सेल के समक्ष आए थे 149 मामले 

यह कदम लखनऊ के संयुक्त पुलिस आयुक्त (लॉ एंड ऑर्डर) उपेंद्र अग्रवाल द्वारा उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को सौंपी गई रिपोर्ट के बाद उठाया गया है। इस report में112 वकीलों के नाम शामिल थे, जिनके खिलाफ 149 शिकायतें मिली थीं। शिकायतों की जांच के लिए संयुक्त पुलिस आयुक्त के कार्यालय में एक विशेष सेल का गठन किया गया है। प्राप्त शिकायतों में से 92 शिकायतें भूमि पर अवैध कब्जे से संबंधित थीं और 57 धमकियां देने से संबंधित थीं। इस विशेष सेल ने उत्तर प्रदेश बार काउंसिल द्वारा इन वकीलों के लिए जारी लाइसेंस को रद्द करने की सिफारिश की है।

बार काउंसिल स्वयं करेगी जांच

उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के को- चेयरमैन प्रशांत सिंह "अटल" ने कहा कि "पुलिस द्वारा दी गई इस सूची की जांच के लिए उत्तरप्रदेश बार काउंसिल अपनी स्वयं की समिति गठित करेगी। समिति यह सत्यापित करेंगे कि पुलिस द्वारा अधिवक्ताओं पर लगाए गए आरोप वास्तविक हैं या नहीं।"

पुलिस की रिपोर्ट सही पाई गई तो होगी कार्यवाही 

प्रशांत सिंह 'अटल' ने कहा कि "समिति यह सुनिश्चित करेगी कि किसी को परेशान न किया जाए। इस सत्यापन प्रक्रिया के दौरान अगर पुलिस रिपोर्ट सही पाई जाती है, तभी वकील के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।" 3 जुलाई की बैठक में जांच समिति का गठन किया जाएगा। समिति आरोपित वकीलों के पक्षों को सुनेगी।

अदालत में पहुंचा था मामला 

➡️ यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने अदालतों में मामलों को आगे बढ़ाने के बजाय संपत्ति के लेनदेन में वकीलों के शामिल होने की शिकायतों को गंभीरता से लिया था। न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा और न्यायमूर्ति एनके जौहरी की खंडपीठ ने 2 दिसंबर 2023 को राज्य सरकार को ऐसे वकीलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।

➡️ उच्च न्यायालय ने 11 रिट याचिकाओं पर एक साथ आदेश पारित किया था, जिनमें से एक स्थानीय वकील प्रशांत सिंह गौर द्वारा 2010 में दायर की गई याचिका भी शामिल थी, जिसमें संपत्ति के लेन-देन में शामिल और आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे वकीलों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी।

➡️ सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय को पता चला कि न्यायमूर्ति उमा नाथ सिंह (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली पीठ ने 2010 में सीबीआई, एसटीएफ, सीबी-सीआईडी और स्थानीय पुलिस को वकीलों के खिलाफ कुछ मामलों की जांच करने के निर्देश दिए थे।

विभिन्न एजेंसियों को दिए निर्देश 

➡️ मामले का संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीश, लखनऊ और पुलिस आयुक्त को जांच की स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। अदालत ने लखनऊ के आयकर आयुक्त (टीडीएस) को प्रॉपर्टी डीलर के रूप में काम करने वाले वकीलों पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया था।

उच्च न्यायालय ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया से ऐसे वकीलों पर अंकुश लगाने के तरीके सुझाने को भी कहा ताकि कानूनी पेशे की गरिमा बरकरार रखी जा सके।

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