समाजवादी पार्टी के विधायक दल की बैठक के बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने माता प्रसाद पांडे को उत्तर प्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष के रूप में घोषित किया। नेता प्रतिपक्ष के अलावा विधानसभा अधिष्ठाता मंडल, मुख्य सचेतक और उप सचेतक के नाम की भी घोषणा की गई।
नहीं लागू हुआ पीडीए फार्मूला
समाजवादी पार्टी लंबे समय से पिछड़ा,दलित एवं अल्पसंख्यक (PDA) फार्मूले के तहत पदाधिकारी का चयन करते आ रही है। इस फार्मूले के तहत नेता प्रतिपक्ष के दावेदारों की सूची में शिवपाल यादव, इंद्रजीत सरोज और तूफानी सरोज का नाम चल रहा था। ऐसा बताया जा रहा है कि बैठक से 10 मिनट पहले तक माता प्रसाद पांडे का नाम दूर-दूर तक चर्चा में नहीं था।
ब्राह्मणों को साधने का प्रयास कर रही है सपा
➡️ सपा के पीडीए फार्मूला की वजह से ऐसा संदेश जा रहा था कि पार्टी अगड़ों को नजरअंदाज कर रही है। माता प्रसाद पांडे की नियुक्ति के माध्यम से पार्टी संदेश देना चाहती है कि वह सब की पार्टी है।
➡️ उत्तर प्रदेश में लगभग 12% से ज्यादा मतदाता ब्राह्मण जाति के हैं। आने वाले उपचुनाव में यह मतदाता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
➡️ कुछ ब्राह्मण विधायकों जैसे मनोज पांडे, राकेश पांडे और विनोद चतुर्वेदी के पार्टी छोड़ने से यह संदेश गया था कि सपा में ब्राह्मणों की अनदेखी की जा रही है। अतः यह नियुक्ति ब्राह्मणों को साधने का एक प्रयास है।
पार्टी के पुराने वफादार हैं माता प्रसाद पांडे
माता प्रसाद पांडे पार्टी के काफी अनुभवी नेता आने जाते हैं। वे मुलायम सिंह यादव के समय के नेता है। 81 साल के माता प्रसाद पांडे सात बार के विधायक होने के साथ-साथ दो बार विधानसभा अध्यक्ष भी रह चुके हैं। पूरी पार्टी में उनके नाम पर स्वीकृति है। माता प्रसाद पांडे वर्तमान में सिद्धार्थनगर की इटवा सीट से विधायक हैं।
माता प्रसाद पांडे और शिवपाल के हैं अच्छे संबंध
पुराने समाजवादी नेता होने की वजह से माता प्रसाद पांडे और शिवपाल यादव के बीच अच्छे संबंध मौजूद हैं। किसी अन्य नेता को चुने जाने पर चाचा शिवपाल के नाराज होने की आशंका रहती, लेकिन माता प्रसाद पांडे के चयन से यह डर समाप्त हो गया।
अन्य नाम पर नहीं बनी सहमति
नेता प्रतिपक्ष के के लिए सबसे पहली पसंद इंद्रजीत सरोज को माना जा रहा था, लेकिन बसपा से सपा में आने की वजह से यह आशंका जताई गई कि वह पुराने समाजवादियों के साथ बेहतर तालमेल नहीं बना पाएंगे। यही कारण था कि उनका चयन नहीं किया गया। वही तूफानी सरोज का नाम इसलिए आगे नहीं बढ़ पाया क्योंकि उनसे वरिष्ठ कई नेता सदन में मौजूद होते और तालमेल बिठाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता था।
आखिर क्यों नहीं चुने गए शिवपाल?
➡️ शिवपाल यादव को नेता प्रतिपक्ष के रूप में न चुने जाने का एक बड़ा कारण समाजवादी पार्टी पर लगने वाला परिवारवाद का आरोप है।
➡️ समाजवादी पार्टी के ऊपर पहले से ही केवल यादवों को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया जाता है और जब विधान परिषद में पहले से ही लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किया गया हो, तो ऐसे में एक और यादव को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाकर सपा इन आरोपों को सच साबित नहीं करना चाहती थी।
➡️ अखिलेश यादव व्यक्तिगत रूप से यह नहीं चाहते थे कि वे मुलायम सिंह यादव वाली गलती को दोहराएं और पार्टी में दो केंद्र बन जाए। अखिलेश नहीं चाहते कि चाचा शिवपाल ज्यादा मजबूत हो जाए।
अन्य नियुक्तियों में चला पीडीए फार्मूला
पिछड़ा,दलित एवं अल्पसंख्यक का पीडीए फार्मूला सिर्फ नेता प्रतिपक्ष के चयन में लागू नहीं हुआ, लेकिन मुख्य सचेतक के रूप में कमाल अख्तर की नियुक्ति,अधिष्ठाता के रूप में महबूब अली की नियुक्ति और उप सचेतक के रूप में राकेश कुमार वर्मा की नियुक्ति में पीडीए फार्मूला पूरी तरह से लागू किया गया।