88 की उम्र में पोप फ्रांसिस का निधन, विश्व ने खोया शांति का मसीहा!: जानें कौन होगे अगले पोप और भारत की भूमिका?
88 की उम्र में पोप फ्रांसिस का निधन, विश्व ने खोया शांति का मसीहा!

Pope Francis: 88 वर्षीय पोप फ्रांसिस ने वेटिकन सिटी में स्थित अपने आवास 'कासा सांता मार्टा' में सोमवार 21 अप्रैल की सुबह 7:30 बजे अंतिम सांस ली। बीते कुछ महीनों से उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी। लंबे समय तक डबल निमोनिया और किडनी फेलियर से जूझने के बाद आज वे इस दुनिया को अलविदा कह गए। उनके जाने से न सिर्फ ईसाई समुदाय बल्कि पूरी दुनिया में शोक की लहर दौड़ गई है।

कौन थे पोप फ्रांसिस?

पोप फ्रांसिस का जन्म अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में हुआ था। उनका असली नाम जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो था। उन्होंने 1969 में एक पादरी के रूप में सेवा शुरू की थी। 2013 में जब पोप बेनेडिक्ट XVI ने अपने पद से इस्तीफा दिया तो 13 मार्च को पोप फ्रांसिस को नए पोप के रूप में चुना गया। वे पहले पोप बने जो यूरोप के बाहर से थे और जेसुइट ऑर्डर से आने वाले पहले व्यक्ति थे।अपने नाम ‘फ्रांसिस’ का चयन उन्होंने सेंट फ्रांसिस ऑफ असीसी के सम्मान में किया था जो शांति, गरीबी और पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक माने जाते हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान चर्च को एक मानवीय, सहानुभूतिपूर्ण और समावेशी दिशा दी।

लंबे समय से बीमार चल रहे थे पोप फ्रांसिस

पिछले कई वर्षों से पोप फ्रांसिस स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे। उनकी उम्र के साथ-साथ पुरानी बीमारियों ने भी उन्हें कमजोर कर दिया था। फरवरी 2025 में उन्हें डबल निमोनिया के कारण अस्पताल में भर्ती करवाया गया था जहां उन्हें लगातार ऑक्सीजन सपोर्ट और ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती रही। मार्च के अंत में अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद वे अपने निवास लौटे और बाहर जमा भीड़ को आशीर्वाद भी दिया जो उनका आखिरी सार्वजनिक दृश्य बन गया।

गौरतलब है कि जब वे युवा थे, तब उनके एक फेफड़े में गंभीर संक्रमण के कारण उसका एक हिस्सा निकालना पड़ा था। इसके चलते उन्हें जीवनभर सांस से जुड़ी समस्याएं झेलनी पड़ीं।

ईस्टर पर दिया था आखिरी संदेश

ईस्टर के मौके पर पॉप फ्रांसिस ने आखिर संदेश दिया था जिसमें पोप फ्रांसिस ने मानवता की सेवा और जरूरतमंदों की मदद की बात कही थी। उन्होंने दुनिया के नेताओं से आग्रह किया था कि वे डर के बजाय सेवा और विकास को प्राथमिकता दें। उन्होंने कहा था, “भूखों को खाना देना, जरूरतमंदों की सहायता करना और इंसानियत को बढ़ावा देने वाली पहल ही शांति के असली हथियार हैं।”

भारत दौरे की हो रही थीं तैयारियां

पोप फ्रांसिस का भारत दौरा भी प्रस्तावित था। बीते वर्ष दिसंबर में केंद्रीय मंत्री जॉर्ज कुरियन ने जानकारी दी थी कि पोप 2025 के बाद भारत आ सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें औपचारिक निमंत्रण भेजा था। 2025 को कैथोलिक चर्च द्वारा जुबली वर्ष घोषित किया गया था जिसके चलते यह यात्रा विशेष मानी जा रही थी लेकिन उनकी गिरती सेहत के कारण यह यात्रा संभव नहीं हो पाई।

14 दिनों को घोषित किया गया शोक

पोप फ्रांसिस के निधन पर दुनियाभर के नेताओं, धार्मिक गुरुओं और आम नागरिकों ने गहरा शोक व्यक्त किया है। वेटिकन ने 14 दिनों का शोक घोषित किया है। इस दौरान चर्च के सभी प्रमुख कार्य कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन संभालेंगे जो वेटिकन के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट हैं।

अब कौन बनेगा अगला पोप?

पोप फ्रांसिस के निधन के बाद नया पोप चुनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। वेटिकन के नियमों के अनुसार 80 वर्ष से कम उम्र के सभी कार्डिनल्स वेटिकन में इकट्ठा होंगे और एक विशेष सभा (कॉन्क्लेव) के तहत नया पोप चुना जाएगा। सिस्टिन चैपल में गोपनीयता की शपथ लेने के बाद सभी कार्डिनल अपने पसंदीदा उम्मीदवार के नाम पर वोट देते हैं। किसी को भी पोप बनने के लिए दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करना होता है।हर मतदान के बाद बैलेट्स को जलाया जाता है। अगर किसी पर सहमति नहीं बनती तो काला धुआं उठता है और जब नया पोप चुन लिया जाता है तब सफेद धुआं निकलता है जो दुनिया को बताता है कि अब चर्च को नया नेता मिल गया है।

चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है भारत

इस बार भारत की भागीदारी भी खास रहने वाली है। हालांकि कार्डिनल जॉर्ज एलेन्चेरी 19 अप्रैल को 80 साल के हो जाने के बाद वोटिंग में हिस्सा नहीं ले पाएंगे लेकिन कार्डिनल जॉर्ज कूवाकड जो वेटिकन में इंटरफेथ डायलॉग विभाग के प्रमुख हैं इस बार मतदान करेंगे। उनका अनुभव और वैश्विक दृष्टिकोण चर्च के नए नेतृत्व के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

यूरोप के बाहर से हो सकते हैं अगले पोप

हालांकि यूरोप के पास सबसे ज्यादा वोटिंग अधिकार हैं लेकिन लैटिन अमेरिका, एशिया और अफ्रीका के प्रतिनिधि अधिक हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं। उनका तर्क है कि कैथोलिक धर्म का सबसे तेज़ी से विस्तार अब पश्चिम से बाहर हो रहा है। ऐसे में एक ऐसे पोप की तलाश है जो विभिन्न संस्कृतियों और विचारों को साथ लेकर चल सके।

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