वन नेशन वन इलेक्शन प्रस्ताव हुआ पास: आखिर कैसे लागू होगा वन नेशन वन इलेक्शन? जाने वन नेशन वन इलेक्शन के सारे नफे नुकसान विस्तार से..
वन नेशन वन इलेक्शन प्रस्ताव हुआ पास

78वे स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी ने वन नेशन वन इलेक्शन के बारे में बातें की थी। मोदी 3.0 के 100 दिन पूरे होते ही मोदी केबिनेट अपने इस विजन को लागू करने के लिए तूफानी गति से आगे बढ़ रही है। इसी कड़ी में वन नेशन वन इलेक्शन का प्रस्ताव केंद्रीय कैबिनेट द्वारा पास कर दिया गया।

रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी थी कमेटी 

वन नेशन वन इलेक्शन का मसौदा तैयार करने के लिए चुनाव के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था। 

इस कमेटी ने 191 दिनों के भीतर ही 18626 पन्नो की रिपोर्ट 14 मार्च को राष्ट्रपति को सौंप दी थी, जिसे मोदी कैबिनेट ने अपनी मंजूरी प्रदान कर दी है। कयास लगाए जा रहे हैं कि शीतकालीन सत्र में वन नेशन वन इलेक्शन पर संसद में एक प्रस्ताव लाया जाएगा। यदि यह प्रस्ताव स्वीकार हो गया तो वर्ष 2029 से संपूर्ण भारत में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ कराए जाएंगे।

कमेटी ने क्या सिफारिशें की? 

➡️ दो चरणों में लागू हो वन नेशन वन इलेक्शन 

कमेटी के अनुसार दो चरणों में वन नेशन वन इलेक्शन को लागू किया जाए। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाने चाहिए। वहीं दूसरे चरण में नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव कराए जाए। कमेटी के अनुसार दोनों चरणों के बीच 100 दिन से ज्यादा का अंतराल नहीं होना चाहिए।

➡️ लोकसभा का कार्यकाल खत्म होते ही हो चुनाव 

कमेटी के अनुसार लोकसभा का कार्यकाल खत्म होते ही लोकसभा के साथ विधानसभा का भी चुनाव कराया जाना चाहिए अर्थात वर्ष 2029 से भारत में वन नेशन वन इलेक्शन को लागू किया जाना चाहिए। यदि किसी अपरिहार्य कारण से किसी विधानसभा का चुनाव नहीं कराया जा सका हो तो कुछ दिनों बाद यह चुनाव कराया जाए, लेकिन विधानसभा का कार्यकाल तय समय पर ही समाप्त होगा।

➡️ विधानसभा तय कार्यकाल से पहले भंग हो जाए तो? 

रामनाथ कोविंद समिति ने यह सुझाव दिया कि यदि विधानसभा तय कार्यकाल के पूर्व ही भंग हो जाती है तो आगे होने वाला मध्यावधि चुनाव बचे हुए कार्यकाल के लिए ही होगा।

➡️ बनेगी केवल एक मतदाता सूची 

वर्तमान समय में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए अलग-अलग मतदाता सूची केंद्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार किया जाता है। वहीं राज्य निर्वाचन आयोग नगरी निकाय एवं पंचायत के लिए भी अलग मतदाता सूची का निर्माण करता है। कमेटी ने सुझाव दिया है कि वन नेशन वन इलेक्शन के लिए पूरे भारत में एक ही मतदाता सूची का निर्माण किया जाएगा। 

➡️ 18 संवैधानिक संशोधन की सिफारिश 

वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने के लिए वर्तमान संविधान में 18 संशोधन करने होंगे और इन संशोधनों के लिए राज्य विधानसभा से अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी। वही समान मतदाता सूची और समान मतदाता पहचान पत्र जैसे कुछ बदलावों के लिए आधे से अधिक राज्यों के अनुमोदन की आवश्यकता होगी।

वन नेशन वन इलेक्शन के लाभ 

➡️ बार-बार होने वाले चुनाव से मुक्ति मिलेगी।

➡️ बार बार आचार संहिता की वजह से विकास कार्यों पर लगने वाला प्रतिबंध नहीं लगेगा।

➡️ बार-बार होने वाले चुनाव की वजह से होने वाले खर्च में कमी आएगी।

➡️ प्रशासनिक कार्यों की गतिशीलता में वृद्धि होगी क्योंकि अधिकारी बार-बार चुनाव में संलग्न नहीं होंगे।

वन नेशन वन इलेक्शन के नुकसान 

➡️ ऐसी आशंका जताई जा रही है कि वन नेशन वन इलेक्शन के आने से राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे दब जाएंगे।

➡️ वन नेशन वन इलेक्शन के आने से यदि राष्ट्रीय मुद्दे महत्वपूर्ण हो जाएंगे तो क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व खतरे में आ सकता है।

➡️ यदि चुनाव के दौरान किसी एक पार्टी की लहर चलती है तो अगले 5 वर्ष तक कोई चुनाव न होने की वजह से प्रशासनिक तंत्र में शिथिलता देखने को मिल सकती है। 

➡️ वर्तमान में चुनाव कराने के लिए होने वाला खर्च किस्तों में होता है, लेकिन वन नेशन वन इलेक्शन करने के लिए एकमुश्त भारी रकम की आवश्यकता होगी जिसका भार सरकारी खजाने पर पड़ेगा।

32 पार्टियों ने किया समर्थन 

रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने रिपोर्ट तैयार करने के दौरान 62 राजनीतिक दलों से सुझाव लिया। इनमें से 32 राजनीतिक दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया, 15 राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया और 15 ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

मायावती ने किया समर्थन तो अखिलेश ने इसे नकारा 

उत्तर प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने वन नेशन वन इलेक्शन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्ति की। मायावती ने जहां वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया। वही अखिलेश यादव ने वन नेशन वन इलेक्शन को सिरे से नकार दिया।

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