क्या केजरीवाल के लिए अपनी ही सीट निकालना बन सकता हैं चुनौती!: नई दिल्ली विधानसभा की जनता ने AAP पर उठाए कई सवाल जानें क्या है सीट का सियासी समीकरण
क्या केजरीवाल के लिए अपनी ही सीट निकालना बन सकता हैं चुनौती!

दिल्ली इलेक्शन: दिल्ली विधानसभा चुनाव का सियासी पारा दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। इसी क्रम में बात करें नई दिल्ली विधानसभा सीट की तो वोटर्स के मामले में भले ही यह दिल्ली की दूसरी सबसे छोटी सीट हो, लेकिन इसकी सियासी अहमियत इस चुनाव में सबसे ज्यादा है। 

दअरसल ऐसा माना जाता है तथा दिल्ली कि जनता का भी कहना है कि जो भी पार्टी चुनाव में यह सीट जीतती है, दिल्ली में सरकार भी उसी पार्टी की बनती है। पिछले 3 चुनावों से केजरीवाल यहां से जीतते आ रहे हैं लेकिन इस बार उम्मीदवारों तथा लोगों के मुद्दों के लिहाज से यह सीट और काफी अहम हो जाती है। देखना होगा कि अरविंद केजरीवाल के लिए यहां की लड़ाई कितनी मुश्किल है।

आइए जानते हैं नई दिल्ली सीट से प्रमुख उम्मीदवार:

सबसे पहले बात करें पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तो इस सीट से वह लगातार 3 बार जीत हासिल कर चुके हैं। वहीं अब चौथी बार इसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। यहां रहने वाली करीब 40% आबादी सरकारी कर्मचारियों की है, जो साफ पानी नहीं मिलने तथा गंदगी से काफी परेशान हैं। यह बात AAP के खिलाफ इस चुनाव में जा सकती है।

वहीं भारतीय जनता पार्टी के द्वारा दिल्ली के पूर्व CM साहिब सिंह वर्मा के बेटे तथा पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा को नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा गया है। वहीं, कांग्रेस पार्टी के द्वारा भी पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित पर चुनावी दांव लगाया गया है।

धोबी तथा वाल्मीकि समाज का वोट होता है निर्णायक:

आपको बता दें कि नई दिल्ली विधानसभा सीट पर धोबी तथा वाल्मीकि समाज का वोट काफी निर्णायक माना जाता है। यहां पर धोबी वोटर्स लगभग 10 हजार तथा वाल्मीकि समाज के वोटर्स भी 15 हजार के करीब हैं। 

इसलिए एक्सपर्ट का ऐसा मानना है कि पिछले 3 चुनावों में वाल्मीकि तथा धोबी समाज के वोटर्स के द्वारा ही अरविंद केजरीवाल को जिताया गया है। लेकिन अब देखना होगा कि क्या इस चुनाव में भी केजरीवाल को इनका साथ मिलता है या फिर कहानी कुछ और बनेगी?

सबसे पहले जानते हैं इस सीट का सियासी समीकरण क्या है:

दअरसल पिछले 30 वर्षों का इतिहास देखें तो जिस भी पार्टी के द्वारा यह सीट जीती गई है, दिल्ली में उसी पार्टी की सरकार भी बनी है। इस सीट पर साल 1993 में पहला विधानसभा चुनाव BJP (भाजपा) से कीर्ति आजाद के द्वारा जीता गया था। तब BJP ने ही दिल्ली में अपनी सरकार बनाई। तब यह सीट गोल मार्केट के नाम से ही जानी जाती थी।

वहीं साल 1998 में यहां से कांग्रेस पार्टी की शीला दीक्षित चुनाव जीतीं तथा दिल्ली की CM बनीं। इसके बाद साल 2003 तथा 2008 में लगातार यहां से मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ही चुनाव जीतती रही तथा दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी रही। वहीं साल 2008 में ही परिसीमन के पश्चात इसे नई दिल्ली सीट के नाम से जाना जाने लगा था।

साल 2013 में पहली बार आम आदमी पार्टी (AAP) दिल्ली विधानसभा के चुनावी मैदान में उतरी। वहीं पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के द्वारा नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़ा गया तथा जीत हासिल करके दिल्ली के मुख्यमंत्री भी बन गए। साल 2015 तथा साल 2020 का चुनाव भी केजरीवाल के द्वारा ही जीता गया तथा तबसे दिल्ली में AAP की सरकार ही बनी हुई है।

चलिए अब बात करते हैं नई दिल्ली विधानसभा के वोटर्स का क्या कहना है:

घर के बाहर तक कचड़ा और पानी भरा रहता है:

दअरसल नई दिल्ली के सबसे पुराने तथा मशहूर बाजारों में से एक बंगाली मार्केट मानी जाती है। इसे बाबर रोड के भी नाम से जाना जाता है। यहां आस-पास पॉश कॉलोनियां हैं, जहां पर लगभग 4000 से अधिक परिवार रहते हैं। 

दिल्ली चुनाव के बारे में पूछने पर एक शख़्स का कहना है कि यहां पर सफाई नहीं होती है। कचरा सड़क पर ही पड़ा रहता है। घर के बाहर तक पानी भर जाता है। कई बार इसकी शिकायत की है लेकिन कोई भी सुनवाई नहीं हुई। केजरीवाल का काम बिल्कुल अच्छा नहीं है। वह सिर्फ घोषणाएं ही करता हैं काम नहीं।

पार्किंग की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है:

वहीं व्यापारी सुरेश चंद बताते हैं कि उनकी अपनी 25 साल पुरानी कपड़ों की एक दुकान है। उनका कहना है कि 10 साल से अरविंद केजरीवाल यहां पर विधायक हैं। BJP तथा कांग्रेस कोई भी काम नहीं करती है इसलिए आम आदमी पार्टी ही एक बेहतर विकल्प लगा था। हमें लगा था कि शायद अब दिल्ली का विकास होगा, लेकिन पार्किंग की समस्या तो अब तक नहीं सुलझी है।

उनसे इस चुनाव में अपने विकल्प के बारे में बताते हुए कहा कि शीला दीक्षित के वक्त यहां पर बहुत अधिक डेवलपमेंट हुआ था लेकिन संदीप दीक्षित पर हमारा भरोसा नहीं हो रहा। इसलिए बीजेपी ही कुछ समाधान निकलेगी।

हमने कई सालों से केजरीवाल को देखा तक नहीं:

इसी क्रम में सफदरजंग कि बात करें तो यहां कुछ झुग्गी बस्तियों को छोड़ दें तो यह पूरा काफी पॉश इलाका है। इस सीट पर केंद्र तथा राज्य कर्मचारियों के सरकारी क्वार्टर भी बने हुए हैं। सरकारी कर्मचारियों का चुनावी रुझान भी कुछ इसी प्रकार मिला जुला है। 

दअरसल सफदरजंग अस्पताल के स्टाफ क्वार्टर में रहने वाले अरुण गोस्वामी कहते हैं कि हमने कई सालों से अपने विधायक यानि अरविंद केजरीवाल को यहां नहीं देखा है। हमने उन्हें 3 बार मौका दिया था लेकिन वह सिर्फ वोट के लिए ही मुफ्त की योजनाएं दे रहे हैं। जबकि पानी, सड़क तथा सुरक्षा जैसे मुद्दों से उनका कोई मतलब ही नहीं है।

वहीं कांग्रेस तथा शीला दीक्षित के कामों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि पार्टी यदि अपने संगठन को और अधिक मजबूत करती तो शायद केजरीवाल के सामने एक बेहतर विकल्प जरूर होता। उनके वक्त में ही दिल्ली का प्रदूषण कम हुआ था। लेकिन अब पिछले 15 वर्षों में दिल्ली का हर आदमी घुट घुटकर जी रहा है।

मकान का मालिकाना हक पाना है इनका प्रमुख मुद्दा:

आपको बता दें कि हेली लेन पर मौजूद धोबी घाट के लोगों को हर पार्टी लुभाने में जुटी हुई है। अरविंद केजरीवाल के द्वारा धोबी समुदाय के लिए अब एक कल्याण बोर्ड बनाने की गारंटी भी दी गई है। यहां पर रहने वाले लोग इंदिरा गांधी के दौर में रकाबगंज की झुग्गी से यहां आए थे। 

यह कांग्रेस का हमेशा पारंपरिक वोटर रहा है। लेकिन साल 2013 से यह आम आदमी पार्टी की तरफ शिफ्ट हो गया है। यहां भी लोग सरकारी क्वार्टर में रहते हैं। फिलहाल इस चुनाव में इनकी मुख्य मांग है कि मकान का मालिकाना हक उनको दिया जाए।

कांग्रेस पार्टी को जायेगा हमारा वोट:

यहां पर रहने वाली बबिता वर्मा कहती हैं कि मैं जन्म से ही यहीं पर रह रही हूं। चुनाव के वक्त तो यहां सब आते हैं, लेकिन जीतने के पश्चात कोई भी नहीं आता है। शीला दीक्षित के द्वारा यहां पर बहुत काम करवाया गया था। उन्होंने तो पूरी सोसाइटी रेनोवेट करवा दी थी। 

लेकिन अरविंद केजरीवाल तो सिर्फ यहां पद राम लीला के वक्त ही आते हैं। उसके अतिरिक्त वह यहां कभी नहीं आए और न ही कोई खास काम कराया है। इसलिए इस चुनाव में हमारा वोट BJP तथा AAP के बजाय कांग्रेस को जाएगा।

महर्षि वाल्मीकि मंदिर के आस पास रहने वाले लोगों का क्या कहना है:

बता दें कि अरविंद केजरीवाल हर बार महर्षि वाल्मीकि मंदिर से अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत करते रहे हैं। साल 2013 में केजरीवाल के द्वारा इसी मंदिर से अपनी पार्टी का चुनाव चिह्न झाड़ू भी लॉन्च किया गया था। लेकिन इस बार नॉमिनेशन से पहले भाजपा के कैंडिडेट प्रवेश वर्मा भी यहां पर दर्शन करने पहुंचे थे। 

दअरसल यहां की बस्ती में वाल्मीकि समाज के काफी लोग रहते हैं, जो साफ-सफाई का काम करते हैं। बस्ती के रहने वाले जय प्रकाश अपने समाज की मांगों को लेकर कहते हैं कि यहां ऐतिहासिक वाल्मीकि मंदिर बना हुआ है। हर कोई चुनाव से पूर्व यहां पर आकर आशीर्वाद लेता है, लेकिन चुनाव जीतने के पश्चात हमारे समाज को सब भूल जाते हैं। यहां ठेकेदारी प्रथा भी चलती आ रही है, जिसकी वजह से हमारी आर्थिक स्थिति नहीं सुधर पा रही है।

आइए अब जानते हैं कि पार्टियों के द्वारा एक दूसरे पर क्या आरोप लगाए जा रहे हैं:

1) भारतीय जनता पार्टी: केजरीवाल ने सिर्फ जनता का वोट लिया लेकिन काम नहीं किया

दअरसल नई दिल्ली सीट से BJP के कैंडिडेट प्रवेश वर्मा अपनी जीत को लेकर काफी आश्वस्त हैं। वह अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए यह कहते हैं कि 3 बार से यहां पर केजरीवाल सिर्फ जनता का वोट ले रहे हैं, लेकिन काम करने के लिए एक पैसे भी खर्च नहीं किया है। दिल्ली तथा पंजाब के AAP कार्यकर्ता को यहां पर आकर देखना चाहिए कि उनका नेता किसी भी लायक नहीं है। 

उन्होंने आगे कहा कि दिल्ली सरकार के मोहल्ला क्लिनिक में जाकर देखो तो वहां पर कोई अच्छी दवा नहीं मिलती है। केजरीवाल बिल्कुल भी कोई काम नहीं कर रहे हैं। इसलिए केजरीवाल यह चुनाव हार रहे हैं, क्योंकि मैं उनके सामने लड़ रहा हूं। अतः सारा वोटर BJP की तरफ शिफ्ट हो गया है।

AAP: कांग्रेस तथा भाजपा का मेनिफेस्टो ही है उनकी हार का सबूत

आम आदमी पार्टी के प्रचारक तथा मुंबई में पार्टी के वाइस प्रेसिडेंट संदीप मेहता यह कहते हैं कि कांग्रेस हो अथवा भाजपा इनका मेनिफेस्टो ही इनकी हार का सीधा सबूत है। जिसमें कह रहे कि ये वह सब करने वाले हैं, जो अरविंद केजरीवाल कर रहे हैं। मतलब इनके पास कोई विजन नहीं है।

उन्होंने आगे कहा कि केजरीवाल तो बिजली, पानी तथा मेडिकल सुविधा समेत महिलाओं के लिए फ्री बस, बुजुर्गों के लिए दवाइयां एवं तीर्थयात्रा पहले से ही दे रहे हैं। अतः अबकी हमारी सरकार बनाने के पश्चात स्टूडेंट्स के लिए मेट्रो भी फ्री हो जाएगी।

कांग्रेस: केजरीवाल तथा BJP ने कोई काम नहीं किया, इसलिए कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प है

इसी क्रम में कांग्रेस के कैंडिडेट संदीप दीक्षित यह कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल मुझे इस बार गंभीर कैंडिडेट नहीं दिखते हैं, क्योंकि उनका यहां पर ज्यादा काम नहीं रहा है। कोई यह नहीं कह रहा कि उन्होंने नई दिल्ली सीट पर बहुत काम किया है। बस 10 साल में बना उनका कोर वोटर ही केजरीवाल को वोट दे रहा है।

वहीं BJP का भी कोर वोटर छोड़ दें तो मुझे कोई ऐसा दिख नहीं रहा है कि भाजपा के लिए कोई बहुत उत्साहित हो। दिल्ली में भाजपा का भी रोल है। वह म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में रही है। लेकिन BJP का भी बहुत इफेक्टिव रोल दिल्ली में नहीं रहा है। इसलिए जनता भी दोनों पार्टियों पर सवाल उठा रही है। अतः ऐसे में कांग्रेस पार्टी ही एकमात्र विकल्प के रूप में सामने दिखाई देती है।

एक्सपर्ट: आसान नहीं होगी केजरीवाल की इस बार जीत

वहीं अगर हम पॉलिटिकल एक्सपर्ट सुनील कश्यप की बात करें तो उनका कहना है कि नई दिल्ली विधानसभा सीट के द्वारा पिछले 27 सालों से दिल्ली को मुख्यमंत्री दिया गया है। इस बार केजरीवाल के सामने भाजपा के प्रवेश वर्मा हैं। वहीं कांग्रेस पार्टी से संदीप दीक्षित उनके सामने चुनाव लड़ रहे हैं। 

इसलिए केजरीवाल के लिए भी इस बार यहां से जीतना पहले की तरह आसान नहीं होगा क्योंकि इसकी बड़ी वजह वैसे तो भाजपा प्रत्याशी संदीप दीक्षित भी हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल का मुख्य मुकाबला देखें तो वह प्रवेश वर्मा से दिखाई पड़ता है।

अन्य खबरे