वसंतकुंज में दिल दहलाने वाला हादसा: बेटियों संग पिता ने खाया सल्फास, आर्थिक संकट ने छीनी जिंदगियां?
वसंतकुंज में दिल दहलाने वाला हादसा

दिल्ली: दिल्ली के वसंतकुंज इलाके में हुई इस दर्दनाक घटना ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया। 46 वर्षीय हीरालाल, जो अपनी चार दिव्यांग बेटियों के साथ रहता था, ने आर्थिक तंगी और निजी समस्याओं से परेशान होकर सामूहिक आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठाया। इस घटना ने 2018 के बुराड़ी कांड की यादें फिर से ताजा कर दीं, जब एक ही परिवार के 11 सदस्यों ने अजीब परिस्थितियों में सामूहिक आत्महत्या कर ली थी। हालांकि, इस बार मामला आर्थिक समस्याओं और परिवार के टूटने से जुड़ा है।

घर से बदबू आने से घटना का हुआ खुलासा

घटना का पता तब चला जब वसंतकुंज के रंगपुरी गांव में पड़ोसियों को घर से बदबू आने लगी। जब पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दी, तो पुलिस ने मौके पर पहुंचकर घर का दरवाजा तोड़ा। अंदर का दृश्य दिल दहलाने वाला था। चारों बेटियां एक बिस्तर पर मृत पड़ी थीं, जबकि हीरालाल का शव दूसरे कमरे में मिला। शव काफी हद तक सड़-गल चुके थे, जिससे साफ हुआ कि यह घटना कुछ दिन पहले ही घट चुकी थी। पुलिस को मौके से सल्फास की गोलियां, जूस के टेट्रा पैक और पानी की बोतलें मिलीं, जिससे यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि हीरालाल ने अपनी बेटियों को सल्फास देकर पहले मार डाला और फिर खुद भी उसी जहर का सेवन किया।

इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर में बढ़ई का काम करता था हीरालाल 

हीरालाल एक साधारण मजदूर था, जो इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर में बढ़ई का काम करता था। उसका वेतन करीब 25 हजार रुपये प्रति माह था, जो परिवार के लिए पर्याप्त नहीं था, खासकर तब जब उसकी पत्नी की कैंसर से मौत हो गई थी। पत्नी की मौत के बाद हीरालाल पूरी तरह टूट चुका था। उसे अपनी चार बेटियों का अकेले ही ख्याल रखना पड़ता था, जो दिव्यांग थीं और चलने-फिरने में असमर्थ थीं। इन बेटियों का नाम नीतू (26), निक्की (24), नीरू (23), और निधि (20) था। सबसे दुखद बात यह थी कि सभी बेटियों ने स्नातक किया हुआ था, लेकिन उनकी शारीरिक अक्षमता के कारण उनका जीवन बेहद कठिन हो गया था।

हीरालाल ने पत्नी की मृत्यु के बाद से खुद को परिवार और समाज से लगभग काट लिया था। वह अपनी बेटियों के इलाज में ही उलझा रहता था और किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करता था। उसकी हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि छह महीने पहले उसकी नौकरी भी चली गई थी, क्योंकि वह नियमित रूप से काम पर नहीं जा पाता था। इस घटना के बाद उसकी आर्थिक हालत और भी खराब हो गई, जिससे वह पूरी तरह से निराशा में डूब गया था।

पड़ोसियों और रिश्तेदारों की प्रतिक्रिया

पड़ोसियों का कहना है कि हीरालाल की स्थिति पत्नी की मौत के बाद से ही लगातार खराब होती जा रही थी। वह दिन-रात बेटियों की देखभाल करता था और उनका इलाज कराता था, लेकिन किसी से अपनी परेशानियों का जिक्र नहीं करता था। उसकी चार मंजिला इमारत में करीब 25 परिवार रहते थे, लेकिन किसी को भी यह अंदेशा नहीं था कि हीरालाल इतना बड़ा कदम उठा लेगा ।

बेटियाँ पढ़ने मे थी होशियार

हीरालाल के भाई मोहन शर्मा और भाभी गुड़िया शर्मा इस घटना से स्तब्ध हैं। उनका कहना है कि चारों बेटियां पढ़ाई में होशियार थीं और उनमें से नीरू ने तो विज्ञान में स्नातक किया था। सबसे छोटी बेटी निधि भी पढ़ने में बहुत तेज थी। 2016 में नीरू की दृष्टि चली गई थी, और इसी के बाद से परिवार की स्थिति और ज्यादा खराब हो गई। रिश्तेदारों का कहना है कि पिछले छह महीनों से उनकी हीरालाल से कोई बातचीत नहीं हुई थी, हालांकि उन्होंने कई बार फोन किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

आर्थिक संकट से जूझ रहा था हीरालाल

पुलिस की शुरुआती जांच से पता चला है कि हीरालाल आर्थिक तंगी से बुरी तरह जूझ रहा था। उसकी पत्नी की बीमारी और मृत्यु ने उसकी आर्थिक स्थिति को कमजोर कर दिया था। पत्नी की मृत्यु के बाद वह घर की जिम्मेदारियों और नौकरी के बीच संतुलन नहीं बना पा रहा था। बेटियों की देखभाल, इलाज और घर के खर्चे उसे मानसिक और शारीरिक रूप से थका चुके थे। उसकी मानसिक स्थिति भी लगातार खराब हो रही थी, लेकिन उसने अपनी परेशानियों को किसी से साझा नहीं किया।
पुलिस ने हीरालाल के मोबाइल और बैंक खातों की जांच के लिए उसे फॉरेंसिक लैब भेज दिया है। यह जांच की जा रही है कि क्या हीरालाल ने कहीं से कर्ज लिया था या किसी तरह की वित्तीय धोखाधड़ी का शिकार हुआ था। इसके अलावा, पुलिस यह भी देख रही है कि हीरालाल के इस कदम के पीछे कोई अन्य कारण तो
नहीं था।

यह घटना समाज के लिए एक बड़ा सबक

यह घटना समाज के लिए एक बड़ा सबक है कि मानसिक तनाव और आर्थिक तंगी किस हद तक लोगों को प्रभावित कर सकते हैं। हीरालाल जैसे लोग, जो अकेले ही अपने परिवार की जिम्मेदारी उठा रहे होते हैं, अगर समय पर उन्हें सहायता और समर्थन नहीं मिलता है, तो वे ऐसे कठोर फैसले लेने पर मजबूर हो जाते हैं। समाज और सरकार को इस दिशा में और अधिक ध्यान देने की जरूरत है ताकि ऐसे लोगों की मदद की जा सके और वे मानसिक अवसाद का शिकार न हों।

इस दुखद घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आर्थिक और मानसिक समस्याएं किस तरह से एक व्यक्ति को उस स्थिति तक ले जा सकती हैं, जहां उसे अपनी और अपने परिवार की जान देने के अलावा कोई और रास्ता नहीं दिखता।

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