जम्मू कश्मीर के पहलगाम में 26 निर्दोष लोगों की हत्या से कई ऐसे सवाल खड़े हो गए, जिनका जवाब जानने को जनता बेताब है, नाम पूछकर गोली…अमरनाथ यात्रा से ठीक पहले…अमेरिकी उपराष्ट्रपति के भारत दौरे के दौरान…और फिर पाकिस्तानी वायुसेना का अचानक अलर्ट पर आ जाना — क्या ये सब महज इत्तेफाक था या थी कोई बड़ी साजिश? वही भारत की जवाबी कार्रवाई के डर से पाकिस्तान ने क्यों अपने वायुसेना को हाईअलर्ट पर किया?
अमेरिकी प्रतिनिधि के दौरे पर ही क्यों हुआ हमला?
अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेन्स अपने परिवार के साथ 4 दिनों की भारत यात्रा पर हैं, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आतंकियों ने ऐसे ही हमला किया या फिर अमेरिका को भारत की कश्मीर नीति को लेकर एक अलग संदेश देना चाहा जैसी सोची समझी गई साजिश थी?
अमेरिका की उपराष्ट्रपति भारत में मौजूद और उसी दौरान यह भयावह हमला — सवाल खड़ा करता है कि दहशतगर्दों द्वारा यह हमला सिर्फ भारत को ही नहीं, दुनिया को भी संदेश देने की एक रणनीति का हिस्सा थी? अब समय आ गया है वैश्विक स्तर पर एक साथ मिलकर संगठित अपराध को खत्म करने की कार्रवाई को और तेज करना....
अमरनाथ यात्रा से पहले ही क्यों?
गौरतलब है भारत मे अमरनाथ यात्रा की जल्द ही शुरुआत होने वाली है,
ऐसे में जब कश्मीर अमरनाथ यात्रा की तैयारी में था, लाखों श्रद्धालु आने वाले थे — तभी पहलगाम में ऐसी नृशंस बर्बरता क्यों? क्या ये हमला आस्था को निशाना बनाने की कोशिश थी? क्या आतंकी चाहते हैं कि कश्मीर में एक बार फिर भय का माहौल हो?
कहां हुई इंटेलिजेंस की चूक?
हमारी खुफिया एजेंसियों को इस हमले की समय रहते भनक और उस पर समय रहते समन्वय के साथ कार्रवाई न कर पाना कही न कही चूक को भी प्रदर्शित करता हैं। इतना बड़ा हमला हुआ तो जिम्मेदार कौन?
गोलियां धर्म पूछकर ही क्यों चलीं?
शहीदों की पहचान बताती है कि आतंकियों ने पहले नाम पूछा, धर्म जाना…और फिर गोली चलाई। यह सिर्फ हमला ही नहीं था बल्कि धार्मिक विभाजन को फैलाने की एक गहरी साजिश भी था? क्या ये सोची समझी साजिश के तहत किया गया? ऐसे न जाने कितने सवाल लोगो के जेहन में चल रहे हैं।
"जा कर, मोदी को बता दो!" के पीछे के क्या है राजनीतिक निहितार्थ?
एक चश्मदीद महिला द्वारा बताया गया कि आतंकियों ने कहा कि जाके, मोदी को बता देना! ये बयान अब देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। ये वाक्य एक धमकी, एक चुनौती और एक गहरी राजनीतिक साजिश की तरफ भी इशारा करता है। इसका इस्तेमाल अक्सर आतंकी घटनाओं के बाद प्रॉवोक करने, राजनीतिक दबाव बनाने और सरकार की स्थिति को अस्थिर दिखाने के लिए किया जाता है, जिससे जनता के बीच भय और असुरक्षा का माहौल पैदा किया जा सके।
साथ ही इसके कई अन्य राजनीतिक निहितार्थ भी हो सकते हैं, इससे विपक्ष को भी सरकार पर सीधे सवाल उठाने का मौका मिलेगा, अंतराष्ट्रीय छवि को नुकसान तथा भारत को युद्ध के लिए भड़काने की नियोजित योजना भी हो सकती है। बहरहाल वतन पर आंच आई हैं तो राजनीतिक रूप से मिलकर दुश्मन पर कठोरतम कार्रवाई करना बहुत जरूरी हैं जिससे भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके।
छोटे आतंकी संगठन ने ली जिम्मेदारी…लेकिन क्या सच्चाई कुछ और है?
इस जघन्य घटना में लोकल संगठन TRF का नाम सामने आया, लेकिन क्या असली मास्टरमाइंड कोई बड़ा अंतरराष्ट्रीय जिहादी नेटवर्क है? क्या ये ISIS की रीजनल शाखा की ओर से किया गया हमला था? इसके साथ ही इसके लश्कर-ए-तैयबा से भी कनेक्शन ढूंढे जाने चाहिए।
सैलानियों को बचाने के लिए ढाल बने टट्टूवालें की बहादुरी बनी मिशाल
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के दौरान टट्टू चलाने वाले सैयद आदिल हुसैन शाह ने बहादुरी दिखाते हुए एक आतंकी से बंदूक छीनने की कोशिश की। उन्होंने घोड़े पर बैठे पर्यटक को बचाने के लिए अपनी जान गंवा दी। हमले में 27 सैलानी मारे गए। आदिल शाह इकलौते स्थानीय शख्स थे जो इस हमले में शहीद हुए। उनकी बहादुरी को पूरे देश में सलाम किया जा रहा है।
खौफ में पाकिस्तान? क्या होगा भारत का अगला कदम?
सूत्रो के अनुसार पाक एयरफोर्स रातभर अलर्ट मोड पर रही। ऐसे में सवाल उठता कि क्या भारत फिर से एयरस्ट्राइक कर सकता है या फिर...
क्या मोदी सरकार फिर से आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब देगी? या अन्य कार्रवाई करेगी यह देखने वाली बात होगी।
जनता के कई अब भी अनसुलझे सवाल
इस आतंकवादी हमले के बाद और भी सवाल है जो जनता को बेचैन किये है जैसे कि
क्या ये महज आतंकी हमला था या कश्मीर में फिर से आग लगाने की सोची समझी साजिश?
कब तक आम लोग इस नफरत की राजनीति का शिकार बनते रहेंगे?
क्या मोदी सरकार फिर से निर्णायक जवाब देगी?