हरियाणा की हार से कांग्रेस पार्टी की बढ़ी चुनौतियां: इंडी गठबंधन में पड़ेगी फूट या सहयोगी दल बनाएंगे कांग्रेस पर दबाव? जानें पूरी खबर विस्तार से...
हरियाणा की हार से कांग्रेस पार्टी की बढ़ी चुनौतियां

लोकसभा चुनाव में मिली ताकत से उत्साहित कांग्रेस पार्टी की राज्यों में अपना चुनावी पताका फहराने की मंशा हरियाणा की पहली ही राजनीतिक परीक्षा में फेल हो गई है। दरअसल राज्य में सत्ता विरोधी अनेंक सुरों के बीच बने अनुकूल माहौल के बावजूद भी लचर रणनीति के कारण एक बार फिर से हरियाणा कांग्रेस के हाथ से फिसल गया है। वहीं इसका असर अब पार्टी की गठबंधन वाली राजनीति पर भी पड़ना तकरीबन तय हो गया है।

क्या महाराष्ट्र तथा झारखंड में दिखेगा इसका असर:

लोकसभा चुनाव में कुल 99 सीटें जीतकर विपक्ष की धुरी के रूप में उभरी कांग्रेस पार्टी के इस लचर प्रदर्शन से उसके सामने BJP से मुकाबले के साथ ही INDIA में शामिल सभी घटक दलों के दबाव की चुनौती भी रहेगी। 

जाहिर तौर पर सभी सहयोगी दल अपने अपने प्रभुत्व वाले राज्यों में कांग्रेस पार्टी का राजनीतिक प्रभाव कम करने का प्रयास अवश्य करेंगे। महाराष्ट्र तथा झारखंड जैसे राज्यों के बहुत जल्द होने जा रहे चुनाव में भी इसका असर दिख सकता है, जहां सहयोगी दल कांग्रेस पार्टी पर हावी होने की कोशिश करेंगे।

कई दलों के द्वारा कांग्रेस पर कसा गया तंज:

भाकपा, शिवसेना-यूबीटी तथा आम आदमी पार्टी के द्वारा कांग्रेस पर तंज भी कसा गया है, जिसने इसकी झलक भी दिखा दी है। यह सभी दल इन दोनों राज्यों में अब कांग्रेस के विरुद्ध फ्रंटफुट पर आकर अधिक आक्रामक राजनीतिक दांव भी खेलेंगे। 

वहीं लोकसभा चुनाव के पश्चात से विपक्ष के नेता के तौर पर उभरे तथा कांग्रेस की राजनीति को आक्रामक तरीके से धार देने वाले लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी को भी हरियाणा के इन नतीजों से एक बड़ा झटका लगा है।

जम्मू-कश्मीर में भी कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब:

वहीं किसान, जवान, नौजवान के साथ साथ महंगाई, बेरोजगारी एवं जातीय जनगणना का चुनाव प्रचार में अस्त्र के रूप में प्रयोग किया गया, लेकिन नतीजों में यह प्रभावी साबित नहीं हो सका। हालांकि जम्मू-कश्मीर के चुनाव में तो नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ पार्टी का गठबंधन होने के कारण कांग्रेस जीत के पाले में है।

लेकिन राज्य में उसका चुनावी प्रदर्शन बेहद खराब रहा है। टोटल 32 सीटों पर गठबंधन करके चुनाव लड़ने के बावजूद भी उन्हें केवल 6 सीटें ही मिली हैं तथा जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कांग्रेस पार्टी का एक भी हिंदू विधायक चुनाव नहीं जीत पाया है।

कांग्रेस पार्टी पर दोबारा दबाव बनाना शुरू:

आपको बता दें कि हरियाणा में कांग्रेस का यह प्रदर्शन कुछ-कुछ दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम से भी मेल खाता हुआ दिख रहा है, जो लीग तथा सेमीफाइनल मैच जीतने के बाद फाइनल में अपनी बाजी गंवा देती है। वहीं आपसी गुटबाजी वाले आत्मघाती गोल से हरियाणा को गंवाने का ही नतीजा है कि INDIA गठबंधन के सहयोगी दलों के द्वारा कांग्रेस पर दबाव डालने का अपना दांव चलने में देर नहीं लगाई गई। 

दरअसल महाराष्ट्र चुनाव में उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में मुख्य चेहरा घोषित करने से हिचक रही कांग्रेस पार्टी को हरियाणा के पश्चात दबाव में लेने का दांव चलते हुए शिवसेना तथा UBT के द्वारा भाजपा से सीधे लड़ने की उसकी क्षमता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

आप ने भी दी अहंकार छोड़ने की नसीहत:

वहीं दूसरी ओर शिवसेना की राज्यसभा सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी के द्वारा भी तंज कसते हुए अपनी पहली प्रतिक्रिया में यह कहा गया कि भाजपा से सीधे चुनावी मुकाबले में कांग्रेस पार्टी कमजोर पड़ जाती है तथा पार्टी को अपनी रणनीति पर भी विचार एवं मंथन करना चाहिए।

वहीं आम आदमी पार्टी के द्वारा भी कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए उसे तत्काल रूप से अहंकार छोड़ने की नसीहत दे दी गई। भाजपा की बढ़ी हुई चुनौती के साथ INDIA के सहयोगियों के दबाव से भी निपटना अब कांग्रेस के लिए नई चुनौती होगी।

सहयोगी दलों को साथ में लेकर चलना कांग्रेस की जिम्मेदारी:

इसका संकेत तो उनके सबसे करीबी मित्र दलों में शामिल भाकपा के महासचिव D राजा की हरियाणा के परिणामों पर गंभीरता से आत्मचिंतन करने वाली सलाह से मिलती है। दरअसल डी. राजा के द्वारा कहा गया है कि हरियाणा नतीजों के पश्चात कांग्रेस पार्टी को महाराष्ट्र एवं झारखंड के आगामी विधानसभा चुनावों में INDIA के सभी सहयोगियों को साथ लेकर चलना चाहिए।

INDIA के दलों को एक-दूसरे पर आपसी विश्वास के साथ ही काम करते हुए सीट बंटवारे में भी सामंजस्य बनाना चाहिए, क्योंकि हरियाणा में ऐसा नहीं हुआ था जिसका परिणाम सबने देखा है। उन्होंने यह भी साफ कहा है कि सहयोगी दलों को साथ लेकर चलना कांग्रेस पार्टी की ही जिम्मेदारी है तथा सीटों के बंटवारे में भी उसे उदारता दिखानी चाहिए।

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