सड़क दुर्घटना में प्रतिदिन 474 लोगों की मौत: 2023 के सरकारी आंकड़ों में चौंकाने वाला खुलासा? जानें क्या है पूरी खबर…
सड़क दुर्घटना में प्रतिदिन 474 लोगों की मौत

देश में वर्ष 2023 में सड़क हादसों में अपनी जान गंवाने वाले लोगों की संख्या को लेकर एक बेहद चौकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। दरअसल राज्यों के द्वारा केंद्र सरकार के साथ में साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार साल 2023 में सड़क दुर्घटनाओं में लगभग 1.73 लाख लोग मारे गए हैं। इसका मतलब यह है कि हर दिन औसतन 474 लोगों की जान सड़क दुर्घटना से गई है अथवा लगभग हर 3 मिनट में एक मौत हुई है।वहीं समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार जब से सरकार के द्वारा समस्या की गंभीरता तथा दुर्घटनाओं के पीछे के कारणों का आकलन करने हेतु राष्ट्रीय स्तर पर सड़क दुर्घटना के आंकड़ों को एकत्र करना शुरू किया गया है तब से यह किसी 1 वर्ष में मारे गए लोगों की सर्वाधिक संख्या है।

पिछले वर्ष 4.63 लाख लोग हुए घायल:

इन आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि सड़क दुर्घटनाओं की वजह से घायल होने वाले लोगों की संख्या किस तरह से तेजी के साथ बढ़ रही है, क्योंकि पिछले वर्ष अधिकतम करीब 4.63 लाख लोग सड़क दुर्घटना में घायल हुए थे, जो साल 2022 की तुलना में लगभग 4 प्रतिशत अधिक था।

वहीं सड़क परिवहन मंत्रालय के द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों की संख्या भी करीब 1.68 लाख थी, जबकि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के द्वारा एकत्रित आंकड़ों के अनुसार सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या करीब 1.71 लाख थी। हालांकि दोनों एजेंसियों के दवा अभी तक साल 2023 के लिए सड़क दुर्घटना के आंकड़े प्रकाशित नहीं किए गए हैं।

कई राज्यों में साल 2022 की तुलना में हुई हैं ज्यादा दुर्घटनाएं:

बता दें कि मिली जानकारी के अनुसार ही उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम, तमिलनाडु तथा तेलंगाना समेत कम से कम 21 ऐसे राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेश हैं जहां पर साल 2022 की तुलना में सड़क दुर्घटनाओं में तेजी से वृद्धि दर्ज की गई। जबकि बिहार, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, केरल तथा चंडीगढ़ जैसे कई राज्यों में मृत्यु दर में मामूली सी गिरावट आई है।

पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश में हुईं सबसे ज़्यादा मौतें:

दरअसल सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में देखें तो पिछले साल उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा मौतें करीब 23,652 हुईं हैं। उसके बाद तमिलनाडु जहां 18,347 मौतें हुई हैं। फिर महाराष्ट्र (15,366), मध्य प्रदेश (13,798) तथा कर्नाटक (12,321) का स्थान आता है। हालांकि, सड़क दुर्घटनाओं की वजह से घायल होने वाले लोगों के मामले में तमिलनाडु करीब 72,292 लोगों के साथ इस सूची में सबसे ऊपर रहा, उसके पश्चात मध्य प्रदेश (55,769) तथा केरल (54,320) का स्थान रहा है।

दोपहिया वाहन से हुईं सर्वाधिक मौतें:

सूत्रों के द्वारा यह बताया गया है कि पिछले वर्ष मारे गए लोगों में से लगभग 44 प्रतिशत यानि लगभग 76,000 लोग तो दोपहिया वाहनों पर सवार थे। बता दें कि यह प्रवृत्ति पिछले कुछ वर्षों से लगातार जारी है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले वर्ष मारे गए दोपहिया वाहनों ऑफ सवारों लोगों में से लगभग 70 प्रतिशत लोगों के द्वारा हेलमेट नहीं पहना गया था।

अलग लेन बनाने का जल्द ही बनाया जाए नियम:

दरअसल सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों का यह कहना है कि अब ऐसा समय आ गया है कि जब केंद्र तथा राज्य सरकारें दोपहिया वाहन चालकों की दुर्घटना में हुई मौतों को कम करने के लिए एक सक्रिय कदम उठाएं, क्योंकि शहरी तथा ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में निजी परिवहन का सर्वाधिक लोकप्रिय साधन दोपहिया वाहन ही हैं।वहीं पंजाब सरकार के यातायात तथा सुरक्षा सलाहकार नवदीप असीजा द्वारा यह कहा गया है कि फिलहाल, केवल हेलमेट तथा एंटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम ही ऐसी 2 विशेषताएं हैं, जो दुर्घटना की स्थिति में किसी मोटरसाइकिल चालक को मौत अथवा चोट के जोखिम से बचाती हैं। इसलिए अब वह समय आ गया है कि सरकार के द्वारा शहरी क्षेत्रों से गुजरने वाले सभी राजमार्गों पर दोपहिया वाहनों के लिए एक अलग लेन बनाने के लिए अनिवार्य नियम बनाया जाए।

मलेशिया में अलग लेन बनाने से दुर्घटनाओं में आई है कमी:

आपको बता दें कि इसकी पुष्टि करते हुए सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ रोहित बलूजा के द्वारा यह कहा गया है कि मलेशिया में राजमार्गों पर दोपहिया वाहनों हेतु एक अलग लेन बनाने से दुर्घटनाओं तथा मौतों में बेहद कमी आई है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें जिस चीज पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है, वह है सभी संबंधित एजेंसियों की जिम्मेदारी को तय करना। दरअसल हमारे सिस्टम में विज्ञान के रूप में ट्रैफ़िक इंजीनियरिंग ही गायब है तथा ट्रैफ़िक प्रबंधन को परिभाषित ही नहीं किया गया है। इसलिए किसी की कोई भी जवाबदेही नहीं है। सरकारी संस्थाओं को अब परामर्श वाले तरीके पीएफ निर्भर रहने से बाहर आना चाहिए। उन्हें अब इस बड़ी समस्या से निपटने हेतु सिस्टम के भीतर जाकर क्षमता निर्माण के लिए आगे आना चाहिए।

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