क्या बांस बन सकता है प्लास्टिक का विकल्प? : जानें कैसे बना रहे है अनुभव मित्तल बांस निर्मित प्रोडक्ट?
क्या बांस बन सकता है प्लास्टिक का विकल्प?

प्लास्टिक की खोज हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए हुई थी, लेकिन आज यही हमारी सेहत और पर्यावरण की सबसे बड़ी समस्या बन गई है। पृथ्वी पर प्रदूषण फैलाने में प्लास्टिक का सबसे बड़ा हाथ है। इस परेशानी से लड़ने के लिए अनुभव मित्तल ने बायोक्राफ्ट इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की, जो बांस से बने प्लास्टिक विकल्पों के उत्पादन में विशेषज्ञता रखती है।

उनकी कंपनी ने बांस से विशेष प्रकार के ग्रेन्युल विकसित किए हैं, जो प्लास्टिक की तरह उपयोग किए जा सकते हैं। इस नवाचार का उद्देश्य पर्यावरण के लिए हानिकारक प्लास्टिक के उपयोग को कम करना है। बायोक्राफ्ट को आईआईएम काशीपुर के इंक्यूबेशन सेंटर फीड से मार्केटिंग और अन्य सहायता प्राप्त हुई है, जिसने कंपनी को अपनी पहुंच और प्रभाव बढ़ाने में मदद की है।

आईआईटी दिल्ली से पढ़े है अनुभव

अनुभव मित्तल ने आईआईटी दिल्ली से पॉलिमर इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। उन्होंने विदेश में सस्टेनेबल मैटेरियल पर काम किया है, लेकिन उन्हें महसूस हुआ कि भारत में इस क्षेत्र में बहुत कम काम हो रहा है। इसलिए, 2019 में वे भारत लौटे और अपनी कंपनी का पंजीकरण कराया। 2022 में, उन्होंने कोटद्वार में एक उत्पादन यूनिट स्थापित की। वर्तमान में उनकी कंपनी की मूल्यांकन दस करोड़ रुपये है और वो इसे अगले पांच वर्षों में 500 करोड़ रुपये तक ले जाना चाहते है।

प्लास्टिक से 30 प्रतिशत तक महंगे होंगे उत्पाद

बांस से उत्पाद बनाने की प्रक्रिया में सबसे बांस को 170-180 डिग्री सेल्सियस पर गर्म करके पिघलाया जाता है। फिर पिघले हुए बांस को ग्रेन्यूलेटर मशीन में डालकर बांस के दाने तैयार किए जाते हैं। फिर इन दानों को इजेक्शन मोल्डिंग की प्रक्रिया से मशीन में डालकर उत्पाद तैयार किया जाता है। प्लास्टिक के उत्पाद बनाने वाली मशीनों में ही बांस के उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं, जिससे नई मशीनों की आवश्यकता नहीं होगी। हालाँकि, बांस से बने उत्पादों की कीमत प्लास्टिक के मुकाबले 30 प्रतिशत अधिक होती है, लेकिन ये पर्यावरण के लिए काफी लाभदायक होते हैं।

किसानो को होगा लाभ

बांस के उत्पाद बनाने से किसानों को भी लाभ मिलेगा। विशेषकर उन किसानों को जिनकी जमीन उपजाऊ नहीं है, वे भी बांस की खेती करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं। बांस की मांग हमेशा बनी रहेगी, जिससे किसानों को अपनी खाली जमीन का उपयोग करके अतिरिक्त आय प्राप्त करने का मौका मिलेगा। आईआईएम काशीपुर के फीड इंक्यूबेशन सेंटर ने इस स्टार्टअप को 25 लाख रुपये की ग्रांट दी थी और विभिन्न क्षेत्रों में सहायता प्रदान की थी।


प्लास्टिक उपयोग को कम करना  है उद्देश्य

इस प्रकार, अनुभव मित्तल का यह स्टार्टअप न केवल पर्यावरण की रक्षा कर रहा है, बल्कि किसानों और समाज के अन्य वर्गों को भी लाभ पहुंचा रहा है। बायोक्राफ्ट इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड का उद्देश्य प्लास्टिक के उपयोग को कम करके और बांस को बढ़ावा देकर एक सस्टेनेबल भविष्य की ओर कदम बढ़ाना है।

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