तीन साल में दिल्ली होगी कचरा मुक्त: बिजली और खाद बनाने मे होगा कचरे का इस्तेमाल, कूड़े के पहाड़ों से मिलेगी मुक्ति?
तीन साल में दिल्ली होगी कचरा मुक्त

दिल्ली के कचरा प्रबंधन में बड़ा बदलाव आने वाला है, क्योंकि अगले तीन साल में गाजीपुर, भलस्वा और ओखला जैसे कूड़े के पहाड़ पूरी तरह से समाप्त हो जाएंगे। नगर निगम (एमसीडी) ने लैंडफिल साइटों को कूड़ा मुक्त करने के लिए एक व्यापक योजना तैयार की है, जिसे तीन चरणों में लागू किया जा रहा है। यह परियोजना स्वच्छ भारत मिशन के तहत केंद्र सरकार से मिले फंड के सहयोग से चल रही है। इसका उद्देश्य दिल्ली को कचरा मुक्त बनाना और वहां से निकले कचरे का इस्तेमाल बिजली और खाद बनाने में करना है।

146 लाख मीट्रिक टन कचरा हटाया गया

पहले चरण में, एमसीडी ने 150 लाख मीट्रिक टन कचरे को हटाने का लक्ष्य रखा था, जिसमें से 146 लाख मीट्रिक टन कचरा अब तक हटा लिया गया है। इससे गाजीपुर, भलस्वा और ओखला लैंडफिल साइट्स का बड़ा हिस्सा साफ हो गया है। हालांकि, इन साइट्स पर अभी भी लगभग 160 लाख मीट्रिक टन कचरा जमा है, और हर साल 15 लाख मीट्रिक टन कचरा इसमें और जोड़ा जा रहा है। एमसीडी ने अगले तीन सालों के लिए कचरा प्रबंधन की नई योजना बनाई है, जिसमें पहले दो सालों में 120 लाख मीट्रिक टन कचरा हटाने की योजना है। इससे इन साइट्स पर कचरे का बड़ा हिस्सा समाप्त हो जाएगा। तीसरे चरण में बचे हुए 80 लाख मीट्रिक टन कचरे को हटाया जाएगा।

कचरे से बनाई जाएगी बिजली और खाद

दिल्ली में प्रतिदिन लगभग 11 हजार मीट्रिक टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से वर्तमान में लगभग 7 हजार मीट्रिक टन कचरा बिजली और खाद बनाने के लिए उपयोग किया जा रहा है। एमसीडी चार बड़े संयंत्रों में से 6 हजार मीट्रिक टन कचरे का उपयोग बिजली उत्पादन के लिए करती है। ओखला, तेहखंड, गाजीपुर और बवाना-नरेला स्थित ये संयंत्र कचरे को ऊर्जा में बदलने का काम करते हैं। इसके अतिरिक्त, 500 मीट्रिक टन कचरे से खाद बनाई जाती है, जिसे फसलों के लिए उपयोग किया जाता है।

एमसीडी की योजना है कि आने वाले तीन सालों में दिल्ली से उत्पन्न होने वाले सभी कचरे का उपयोग बिजली और खाद उत्पादन में किया जाए। इस दिशा में एक और बड़ा कदम बवाना-नरेला क्षेत्र में एक नया कचरा-से-बिजली संयंत्र स्थापित करना है, जो प्रतिदिन 4 हजार मीट्रिक टन कचरे की खपत करेगा। इसके अलावा, ओखला संयंत्र की क्षमता को भी बढ़ाया जाएगा, जिससे यह संयंत्र वर्तमान में 2 हजार मीट्रिक टन कचरे की जगह 3 हजार मीट्रिक टन कचरे का इस्तेमाल कर सकेगा। खाद उत्पादन के लिए भी एमसीडी अपनी क्षमता को बढ़ाकर 800 मीट्रिक टन प्रतिदिन करने की योजना बना रही है, जो वर्तमान में 500 मीट्रिक टन प्रतिदिन है।


तीन साल के बाद दिल्ली में नहीं दिखेगी लैंडफिल साइट

एमसीडी की यह योजना न केवल कचरे के ढेर को कम करेगी, बल्कि दिल्ली को स्वच्छ और स्वस्थ शहर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी। तीन साल के बाद दिल्ली में कोई भी लैंडफिल साइट नहीं दिखेगी और जितना भी कचरा उत्पन्न होगा, उसे बिजली और खाद बनाने में पूरी तरह से इस्तेमाल किया जाएगा। इसके लिए कचरा प्रबंधन और पुनर्चक्रण की प्रक्रियाओं को भी आधुनिक बनाया जा रहा है। नए संयंत्रों की स्थापना और पुराने संयंत्रों की क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ, एमसीडी ने कचरे को बेहतर ढंग से इकट्ठा और प्रबंधित करने के लिए नए उपकरण और तकनीकों का भी उपयोग करने का निर्णय लिया है।

इस परियोजना के सफलतापूर्वक लागू होने से न केवल दिल्ली का पर्यावरण साफ होगा, बल्कि इससे रोजगार के नए अवसर भी उत्पन्न होंगे और शहर की बिजली और खाद उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी। इस प्रकार, दिल्ली देश के अन्य शहरों के लिए एक मिसाल बनेगी कि किस तरह से कचरा प्रबंधन के ज़रिए स्वच्छता, ऊर्जा उत्पादन और पर्यावरण संरक्षण को एक साथ संतुलित किया जा सकता है।


दिल्ली को स्वच्छ और हरित राजधानी बनाना है लक्ष्य

इस योजना को लेकर एमसीडी के नेता सदन मुकेश गोयल का कहना है कि "नगर निगम कचरा निपटान की क्षमता का लगातार विस्तार कर रहा है। तीन साल बाद दिल्ली की लैंडफिल साइट्स पूरी तरह से खत्म हो जाएंगी, और जितना कचरा उत्पन्न होगा, उसका पूरा उपयोग बिजली और खाद बनाने में किया जाएगा।" इस महत्वाकांक्षी परियोजना का उद्देश्य न केवल कचरे के ढेर को कम करना है, बल्कि दिल्ली को एक स्वच्छ और हरित राजधानी बनाना भी है, जहां कचरा प्रबंधन के माध्यम से पर्यावरण को संरक्षित करने के साथ-साथ ऊर्जा और खाद के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके।